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पर्यन्त जीवनचर्या आलेखित है। यह चरित्र केवल कहानी मात्र या खाली आलङ्कारिक बाह्याडम्बर का पोषक नहीं, किन्तु आचार्यों के खास कर्त्तव्य - कार्यों का समर्थक है।
- १०. जीव भेद - निरूपण - साइज रॉयल १६ पेजी, पृष्ठ संख्या ४८ है। टाइप, छपाई और कागज बहुत ही बढ़िया है। यह पुस्तक जैन पाठशालाओं के विद्यार्थियों के लिए जीव विचार आदि ग्रंथों के आधार से तैयार की गई है। इसमें कुल १६ पाठ हैं। प्रथम के आठ पाठों में जीवों के भेद प्रभेदों का स्वरूप और पिछले आठ पाठों में उनके शरीरमान, आयु आदि पाँच द्वारों का विवरण दिया गया है। इसको सं. १९८० में निम्बाहेड़ा (टोंक) के रहने वाले दिगम्बर धर्मावलम्बी सेठ जसराजजी पाटोदी ने अपनी पत्नी गेंदीबाई के स्मरणार्थ छपवाया और इसकी ५०० कॉपी साथू (मारवाड़) निवासी शा. चेनाजी अमीचंद पोरवाड़ ने छपाई है। यह जैन प्रभाकर प्रेस, रतलाम में छपी है।
. ११. श्री गौतम कुलक - वसन्ततिलका - वृत्तों में प्राकृत भाषामय २० गाथाओं का किसी. प्राचीनाचार्य रचित सुभाषित शिक्षा ग्रंथ है। उसी का मूल, शब्दार्थ और भावार्थ इसमें समावेशित हैं। इसकी प्रत्येक गाथा जैन और जैनेन्तर सभी को कंठस्त करने योग्य है। इसकी प्रति गाथा में चार-चार शिक्षाएँ दर्ज हैं, जिनके धारण करने से मनुष्य अपना बहुत जल्दी सुधारा कर सकता है। यह ग्रंथ जीव भेदनिरूपण नामक पुस्तक के शामिल ही छपा है।
. १२. पीतपटाग्रह - मीमांसा - साइज क्राउन १६ पेजी, पृष्ठ संख्या ६२ है। टाइप, छपाई और कागज अच्छा है। मूल्य पाँच आना है। सं. १९८० में श्री यतीन्द्र जैन युवक मंडल, निम्बाहेड़ा की तरफ से जैन प्रभाकर प्रेस, रतलाम में मुद्रित। यह वही पुस्तक है, जिसकी शास्त्रोक्त सुदृढ़ युक्तियों का खंडन करने के लिए शहर रतलाम में चतुर्थस्तुतिक, पीतवस्त्राग्रही अपवादी आचार्य सागरानन्दसूरिजी ने नौ महीने तक हेन्डबिल बाजी खेली। अपने
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