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७. गुणानुराग-कुलकम् - इसका आकार मध्यम, पृष्ठ संख्या ४८४ है। टाइप वन्निक जैन ढंग का है। छपाई और कागज अच्छा है, जिल्द बंधी है। इसे सं. १९७४ में बागरा (मारवाड़) निवासी शा. मोती दलाजी पोरवाड़ ने जैन प्रभाकर प्रेस, रतलाम में छपाई है। इस पुस्तक में श्री जिनहर्ष गणी-निर्मित २८ आर्यावृत प्राकृत-भाषा में हैं। परन्तु मुनिराज श्री यतीन्द्रविजयजी ने उसका विस्तृत विवेचन करके ग्रंथ का आयतन मूल से कई गुना बढ़ा दिया है। मुनिवरजी ने प्राकृत-गाथाओं की संस्कृत-छाया, उसका शब्दार्थ और उनका भावार्थ भी लिख दिया है। आपका किया ‘विवेचन' बहुत सुन्दर और शिक्षादायक है। पुस्तक की भूमिका में आपने लिखा है कि - 'जो मनुष्य विवेचनगत सिद्धांतों के अनुसार अपने चाल-चलन को सुधारेगा, वह संसार में आदर्श-पुरुष बनकर अपना और दूसरों का भला कर सकेगा।' यह नि:संदेह सच है।” सरस्वती, अगस्त सन् १९१७ पूर्ण संख्या २१२। ।
८. जन्म-मरण सूतक - निर्णय - आंकार रॉयल १६ पेजी, पृष्ठ संख्या १६ है। मूल्य एक आना है। इसकी प्रथमावृत्ति श्री अभिधान राजेन्द्र - कार्यालय और द्वितीयावृत्ति बीजापुर (मारवाड़) निवासी सत्तावत - ताराचंद कूपाजी के तरफ से छप चुकी है। आचार्य श्रीमद् धनचन्द्रसूरिजी महाराज के पास जन्म-मरण संबंधी सूतकों का निर्णय करके विस्तृत विवरण सहित यह पुस्तक लिखी गई है, जो सूतक संबंधी झंझटों को मिटाने के लिए महत्व की
९. संक्षिप्त जीवन चरित्र - आकार क्राउन १६ पेजी, पृष्ठ संख्या १७६ है। टाइप, कागज और छपाई सुन्दर है। इसे मुफ्त वितरण करने के लिए सं. १९८० में धानेरा (पालनपुर) के श्री सौधर्म वृहत्तपागच्छीय जैन संघ ने जैन प्रभाकर प्रेस रतलाम में छपवाया है। श्री सोधर्मवृहत्तपागच्छ की अविच्छिन्न परम्परा में ६६वें पाट पर श्रीमद् विजय धनचन्द्रसूरिजी महाराज एक प्रौढ़-प्रतापी आचार्य हुए हैं। इस पुस्तक में उन्हीं की जन्म से लेकर निर्वाण.
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