SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 312
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बालक मांगीलाल अपना अध्ययन व व्यवसाय करते-करते योवन वय में प्रवेश कर गया। योग्य समय हो जाने पर माता-पिता ने पुत्र के विवाह का विचार कर राजगढ़ नगर के ही श्रेष्ठीवर्य श्री केशरीमलजी बाफना की सुपुत्री चि. अ.सौ. श्रीमती मांगीदेवी के साथ विवाह कर दिया। श्री मांगीदेवी अपने संस्कारी माता-पिता के द्वारा प्रदत्त संस्कारों से ससुर पक्ष के सभी वर्ग का आशीर्वाद प्राप्त कर लिया और अपने धर्म के माता-पिता के दिशा-दर्शन में समय व्यतीत करते हुए अपनी कुक्षी से चार पत्र व दो पत्रियों को जन्म दिया। आज चारों पुत्र ऐसे बदले हुए परिवेश में बिना व्यसन के शुद्ध सात्विक जीवन में रहते हैं। सबसे बड़े पुत्र श्री बसन्तीलाल न्यायधीश है। वर्तमाम में भोपाल पदस्थ हैं। मनोहरलाल इंजिनियर हैं, स्वतंत्र कुमार डॉक्टर है एवं अपना निजी नर्सिंगहोम चलाते हैं एवं प्रकाशचन्द्र ग्रेजुएट है। श्री मनोहरलाल व प्रकाशचन्द दो व्यापार धार में करते हैं। दोनों कन्याएं ग्रेज्यूएट हैं। चि.अ.सौ. निर्मलादेवी के लग्न गुना निवासी श्री सतीशचन्द्रजी टाटीयाजी से किया है एवं चि.अ.सौ. रविन्दादेवी के लग्न गुना निवासी श्री प्रदीपचन्दजी लौढा से किया है। दोनों बहने ससुराल पक्ष में माता-पिता द्वारा दिए • सुसंस्कारों से सुशोभित कर रही है। ... - सं. २०१२ ज्येष्ठ सुदी रविवार तारीख ५.६.५५ को परम . घूज्य व्याख्यान वाचस्पति आगम दिवाकर श्रीश्रीश्री १००८ श्रीमद्विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. अपने मुनिमंडल सह श्री मोहनखेड़ा तीर्थ पधारे एवं इस वर्ष का चार्तुमास श्री मांगीलालजी छाजेड के विशेष आग्रह से राजगढ़ में हुआ। चार्तुमास के अन्तर्गत . कई धार्मिक आयोजनों के कार्यक्रम हुए। इसमें महत्वपूर्ण कार्य
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy