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________________ ध्यान में चिन्तन करते विराजमान थे, उसी समय बालक से प्रश्न किया, क्या जिज्ञासा से आना हुआ ? बालक मांगीलाल ने पूज्यवर से विनयसह प्रश्न किया कि हे पूज्यवर आपश्री ने व्याख्यान में सम्यकत्व का महत्व फरमाया कि जीव अजीव आदि नव पदार्थो को जो पुरुष भली भाँति से जानता है, उसको सम्यकत्व होता है अथवा नव तत्वों के स्वरूप को नहीं जानते हुए भी जो पुरुष अन्तःकरण से नव तत्वों को सत्य मानता है, उसे भी सम्यकत्व होता है। तो पूज्यवर सम्यकत्व की प्राप्ति के लिए हम जैसे शास्त्र के अनभिज्ञ को क्या करना चाहिए ? समकित प्राप्ति के लिए। पूज्यपाद उपाध्यायजी म. सा. को खूब आनन्द हुआ बालक मांगीलाल के विचारों को सुनकर पूज्यवर ने फरमाया जिनेन्द्र भगवान की उपासना निर्ग्रन्थ पंच महाव्रत धारि मुनियों की सेवा एवं केवलि भगवन्त भाषित धर्म की आराधना जो जीव करता है, उसे समकित की प्राप्ति है। गुरु वचनों को सुनकर बालक खड़ा हुआ विधि सह वन्दन करके पूज्य गुरु भगवन्त से प्रतिज्ञा ली आज से मैं देव जिनेश्वर, गुरु निर्ग्रन्थ और केवलिभाषित धर्म की आराधना उपासना व अर्चना करूंगा। पूज्यवर ने प्रतिज्ञा करवाई और वासक्षेप डालकर आशीर्वाद दिया अपने ध्येय को धीरता से धारण करके अपने जीवन को ऐसा निर्मल बनाए की अन्य आपका अनुसरण करे। बालक मांगीलाल ने घर जाकर यह बाद अपनी मातेश्वरी से बताई तो मातुश्री ने हर्षोल्हास से मांगीलाल के सिर पर हाथ फेरते हुए आशीर्वाद दिया, मांगु आज तो तेने खूब श्रेष्ठ कार्य किया है। तूने अपने जीवन में ऐसे आदर्श ज्ञानवान गुरु को गुरू धारण किया है कि जीवन में तेरे कोई बाधा नहीं आएगी। सत्य अहिंसा के मार्ग पर जो मानव चलता है, वह जीवन में कभी दुःख नहीं देखता है।
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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