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श्री गुणानुरागकुलकम् २३. मनुष्य को चाहिए कि वह किसी से कठोर बात न कहे और न अपराधी को सख्त सजा दे।जिस मनुष्य ने दूसरे प्राणी मृत्यु के समान डरते हैं उसको भी अपनी कुशल न समझना चाहिए। उसे भी जरूर किसी समय दूसरे से डर लगेगा और वह ऐहिक और पारलौकिक यश प्राप्त नहीं करेगा।
२४. जो यह चाहता है कि मैं बहुत दिन तक जीवित रहूँ उसको चाहिए कि वह किसी प्राणी को न कभी खुद मारे और न दूसरे मनुष्य को मारने की आज्ञा दे। इसी तरह जो अपने लिए जिस जिस बात को अच्छी समझकर चाहता हो उसे वही बात दूसरे के लिए भी अच्छी समझनी चाहिए और दूसरे के हित के लिए भी उसे वैसा ही प्रयत्न करना चाहिए। . ..
२५. जो काम अपने लिए अप्रिय है, वही काम दूसरे को भी अप्रिय लगेगा। दूसरे मनुष्य के किए हुए जिस काम को हम अपने लिए बुरा समझते हैं, वही काम दूसरे को भी बुरा लगेगा। इसलिए हमको भी बुरा काम दूसरे के लिए कभी न करना चाहिए।
२६. तृष्णा को अलग करो, क्षमा करने वाले बनो, घमंड को पास न आने दो, पाप के कामों में प्रीति न करो, सदा सत्य बोलो, अच्छे मनुष्यों के मार्ग पर चलो, विद्वानों की सोबत करो, शिष्ट पुरुषों का सत्कार करो, दुखियों पर दया रक्खो, गुणानुरागी और सरलस्वभावी बनो; ये अच्छे मनुष्यों के लक्षण हैं।
२७. परम पुरुषार्थ करने में जिन्हें लोभ हो रहा है, धन और संसार के विषयो में जो तृप्त हो चुके हैं और जो सत्य मधुर बोलने और अपनी इन्द्रियों को वश में करने में ही धर्म समझते हैं; वे मनुष्य