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श्री गुणानुरागकुलकम्
२३५ प्रेम रखते हैं, वे वैसा ही काम करते हैं जिससे हजारों क्या लाखों मनुष्य सुख पाते हैं।
१८. जिनके हृदय में प्रेम और दया नहीं उनके मुँह से प्रायः मधुर वचन नहीं निकलता। प्रेम और दया ही मधुर वाणी का उत्पत्ति स्थान है। जो लोग प्रेमिक और दयालु हैं वे बहुधा मिष्टभाषी ही होते
. १९. जिनकी अवस्था ऐसी नहीं हो जो किसी का विशेष उपकार कर सकें, उन्हें इतना तो अवश्य चाहिए कि दो चार मीठी बातें बोलकर ही दूसरे को आप्यायित (आनन्दित) करें।
२०. यदि सच्चा सुख पाने की इच्छा हो, यदि दूसरे के मनोमन्दिर में विहार करना चाहते हो और सारे संसार को अपना बनाना चाहते हो तो अभिमान को छोड़कर मिलनशील हो मीठी बात बोलने का अभ्यास करो। मनुष्यों के लिए मधुर भाषण एक वह प्रधान गुण हैं कि जिससे संसार के सभी लोग सन्तुष्ट हो सकते हैं, अतएव मनुष्य मात्र को प्रियभाषी होने का प्रयत्न करना चाहिए। .: २१. अच्छे मनुष्य नम्रता से ही ऊँचे होते हैं, दूसरे मनुष्यों के गुंणों की प्रसिद्ध से अपने गुण प्रसीद्ध करते हैं, दूसरे के कार्यों की सिद्धि करने से अपने कार्यों को सिद्ध करते हैं और कुवाक्यों से बुराई करने वाले दुर्जनों को अपनी क्षमा ही से दूषित करते हैं, ऐसे आश्चर्ययुक्त कामों के करने वाले महात्माओं का संसार में सब आदर किया करते हैं।
२२. दुःखियों की आह सुनकर यदि तुम हँसोगे, और दीन हीन अनाथों की आँखों के आँस न पोंछकर घृणा के साथ उनकी उपेक्षा करोगे, तो इस संसार में तुम्हारे आँसू पोंछने कौन आवेगा, और संकट में कौन तुम्हारी सहायता करेगा?