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________________ श्री गुणानुरागकुलकम् २०५ प्रशंसा करने से बिलकुल दूर रहना चाहिये और नीचे लिखे गुर्जर भाषा के पद्य का मनन करके अपनी आत्मा को पवित्र बनाना चाहिये। मन चन्दाजी! पुष्पसमी रीत राखी जगमां चालवू मन. ॥टेर॥ तु पुषसमी दृष्टि करजे, सद्गुण तेनां उर घरजे। दृढ़ निश्चय धारीने तजरे ॥म.॥ १॥ जेने दूरथी पण सुवास दिए, निरखे ते झट चूंटि लिये। दुःख थाय तथापि नहीं हीये ॥म.॥२॥ • चोले तो तेनो नाश थतो, पण हाथथी वास न दूर जतो। एवो उत्तम गुण तुं कर छतो ॥म.॥३॥ ___ हे मन! पुष्षसम थई रहेजे, अवगुण कोईना नव उर लेजे। सर्वस्थले सहुने सुख करजे ॥म.॥४॥ कनडे तेने सुख देवं, तं आजथी व्रत लेने एवं। दुःख लागे मन मारी रहेवू ॥म.॥५॥
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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