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श्री गुणानुरागकुलकम् तत्त्व दष्टिये दुःख नाम नहीं, सुख पण शोध्युं जड़े न अहीं। शीद झूरी मरे छे ममत्व ग्रही ॥म.॥६॥ कुंकचन्दनी जो तुं सीख धरे, तो जल्दी तुं सुख शान्ति वरे।
आत्मा गुण खोजे मुक्ति वरे॥म.॥७॥ अधमाधमों को उपदेश की तरकीब . काउण तेसु करुणं, जइ मन्नइ तो पयासए मग्गं। अह रुसइ तो नियमा, न तेसि दोसं पयासेइ ॥२४॥ कृत्वा तेषु कुरणां, यदि मन्यते ततः प्रकाशते मार्गम् ।... अथ रुष्यति ततो नियमात् , न तेषां दोषं प्रकाशयति॥२४॥
शब्दार्थ - (जइ) जो (मन्नइ) शिक्षा माने (तो) तो (तेसु) उनपर (करुणं) दयाभाव (काऊण) लाकर (मग्गं) शद्धमार्ग को (पयासए) प्रकाशित कर (अह) अथवा वह (रुसइ) क्रुधित हो (तो).(तेसि) उन के (दोस) अवगुण को (नियमा) निश्चय से (न) नहीं (पयासेइ) प्रकाशित करना।
भावार्थ - हीनाचारी अधमाऽधम पुरुषों के ऊपर करूणाभाव ला करके यदि उन्हें अच्छा मालूम हो तो हितबुद्धि से सत्यमार्ग बताना चाहिए, यदि सत्यमार्ग बताने में उनको क्रोध आता हो तो उनके दोष बिल्कुल प्रकाशित न करना चाहिए।
विवेचन - वास्तव में उपदेश उन्हीं को लाभ कर सकता है कि जो अपनी आत्मा को सुधारना चाहते हैं। जो उपदेश देने से क्रोधित होते हैं उनको उपदेश देना ऊपर भूमि पर बीज बोने के समान