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श्री गुणानुरागकुलकम् भावार्थ - जो मनुष्य पूर्वोक्त चार भेद वाले पुरुषों के बहुमानपूर्वक गुण ग्रहण करते हैं, उनको निःसंदेह शिव सुख मिलता है।
विवेचन - पूज्य पुरुषों की सादर प्रशंसा करने से अज्ञान का नाश होता है, बुद्धि निर्मल होती है, सद्गुणों का स्रोत बढ़ता है, अपमान का क्षय होता है, आत्मीय शक्ति का प्रकाश, सैद्धांतिक रहस्यों का ज्ञान और अनुपम सुखों का अनुभव होता है। गुणी बनने का सबसे सरल उपाय यही है कि पूज्यों का आदर, उनके आने पर खड़े होना, जहाँ-तहाँ उनके गुणों की प्रशंसा करना । पूज्य पुरुषों की निन्दा कभी न करना चाहिये,. क्योंकि इससे सद्गुणों की प्राप्ति नहीं होती, प्रत्युत निन्दा से प्राप्त गुणों का विनाश होता है। संसार में गुण-द्वेषी मनुष्य दुःखी देखे जाते हैं और गुण- प्रशंसा करने वाले लोगों के द्वारा सम्मानित होते देख पड़ते हैं ।
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अहा !! उन सत्पुरुषों को धन्य हैं जो कि इस संसार में जन्म लेकर निःस्वार्थ वृत्ति से परोपकार करने में अपने जीवन को व्यतीत कर रहे हैं, जो सैकड़ों दुःख सहनकर संसार रूप दावानल से संतप्त पामर प्राणियों का उद्धार करने में दत्तचित्त हैं, जो किसी में अंशमात्र भी गुण हैं, तो उसको पर्वत के समान मानकर आनन्दित होते हैं, जो स्वयं दुःख देखते हैं, लेकिन दूसरों को दुःखी नहीं होने देते, जो करुणा बुद्धि से संसारी प्राणियों को सुखी होने के उपाय खोजा करते हैं, जो मरणान्त कष्ट आ पड़ने पर भी सस्यमार्ग का उल्लंघन नहीं करते हैं, जो स्व पर हित साधक व्रतों का पालन करने में सदोद्यत रहते हैं और जो मद मात्सर्य से रहित हो शिष्टाचरण में लगे रहते हैं। “वह दिन कब उदय होगा कि जब मैं भी सत्पुरुषों के मार्ग का आचरण करूँगा और सकल कर्मों का क्षय कर अखण्डानन्द विलासी बनूँगा । " इस प्रकार शुद्ध भावना के सहित गुणीजनों के