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श्री गुणानुरागकुलकम् _ "उपकारी पुरुष का जीवन असली नाणा (सिक्का) के समान है, इससे वह चाहे जहाँ चला जाय, उसकी कदर और कीमत होती है। खानदान कुटुम्ब का उपकार शून्य लड़का खोटे नाणा के समान है, इससे उसकी विदेश में भी कदर और कीमत नहीं होती।"
- "यदि तुम्हारे हस्तगत कुबेर का भी भंडार हो, तो भी अपनी संतति को विद्या (हुन्नर) सिखाओ, चाँदी स्वर्ण की थैलियाँ खाली हो जाती है, लेकिन कारीगरी की थैली नहीं खुट सकती, जो हुन्नर होगा, तो किसी की गुलामी करने का मौका नहीं आवेगा और न भिक्षा माँगना पड़ेगी।"
"जिस तरह मल को साफ करने के लिये जल, वस्त्र को साफ करने के लिए साबू, शस्त्र को घिसने के लिए शराणी, सुवर्ण . परीक्षा के लिये अग्नि और नेत्रों की सुन्दरता बढ़ाने के लिये अंजन की आवश्यकता है। उसी प्रकार सम्पूर्ण कला कौशल और सम्पत्ति प्राप्त करने के लिए उपकार महागुण को सीखने की आवश्यकता
"जिस पुरुष को सन्मार्ग की प्राप्ति हुई हो और यदि वह यह चाहता हो कि जन्म जन्मांतर में भी मुझे सन्मार्ग मिलता जाय, तो उसे चाहिये कि निरन्तर परोपकार करने में तत्पर रहे, क्योंकि परोपकार करने ही से पुरुष के गुणों का उत्कर्ष होता है। यदि परोपकार सम्यक् प्रकार से किया जाय, तो वह धीरता को बढ़ाता है, दीनता को कम करता है, चित्त को उदार बनाता है, उदरंभरित्व को छुड़ाता है, मन में निर्मलता लाता है और प्रभुता को प्रगट करता है। इसके पश्चात् परोपकार करने में तत्पर रहने वाले पुरुष को पराक्रम (वीर्य) प्रगट होता है, मोहकर्म नष्ट होता है और दूसरे जन्मों