________________
श्री गुणानुरागकुलकम्
इस श्लोक को सुनते ही कालिदास को असीम आनन्द हुआ और राजा भोज का उत्तर देने के लिये आखिरी दिन सभा में हाजिर हुआ। राजा के पूछने पर कालिदास ने कहा कि - महाराज ! धर्म का पिता उपकार है। इस बाबत में महात्मा बुद्ध का भी अभिप्राय है कि 'दया उपकार की माता और उपकार धर्म का पिता है। इस उपकार का प्रकाश, जिसके हृदयपट पर पड़ा, वह मनुष्य दिव्य दृष्टि समझा जाता है। '
१९२
इस उत्तर को सुनकर राजा भोज अत्यानन्दित हुआ और उसने. अपने आश्रित पाँच सो पण्डितों से सुशोभित सभा में कालिदास का बड़ा भारी सत्कार किया । इसी से कहा जाता है कि संसार में निःस्वार्थ उपकार के प्रभाव से ही मनुष्य पूज्य समझा जाता है। एक भाषा कवि ने भी लिखा है कि
स्वार्थ बिन उपकार दिव्य गुण कहे जाय, स्वार्थ बिन उपकार धर्म को प्रभाव हैं।. स्वार्थ बिन उपकार सुकृत की सुन्दर माल, स्वार्थ बिन उपकार पूर्ण प्रेम भाव है ॥ हरि हर जैन बौद्ध स्वार्थ बिन उपकार से,
जगत में पूज्य बने पूरण प्रभाव से ।
ऐसे दिव्य गुण धरी रहो, नित्य मगन में,
परम उपकार यश गाजे हैं गगन में ॥१॥
उपकार के विषय में आधुनिक विद्वानों ने भी लिखा है कि "मनुष्य की श्रेष्ठता, उदारता, मोटाई और नम्रता में रही हुई है,