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________________ १८२ श्री गुणानुरागकुलकम् यह बात प्रशस्य है, तथापि यहाँ गृहस्थ धर्म का विषय है, इसलिये काम के अभाव में गृहस्थाऽ भावरूप आपत्ति आ पड़ने की संभावना है। इस वास्ते तीनों वर्ग की योग्य रीति से सेवा करने वाला मनुष्य धर्म के लायक होता है और वही मनुष्य सद्गुणी बनकर आत्म सुधार और समाज सुधार भले प्रकार कर सकता है। .. पाठकगण! धर्म, अर्थ और काम में बाधा पड़ने की संभावना हो, तो पूर्व को बाधा न होने देना चाहिये। कदाचित् कर्मवश से चालीस वर्ष की अवस्था में स्त्री की मृत्यु हो जाय, तो फिर से विवाह करना व्यवहार विरुद्ध और शास्त्र विरुद्ध है, इससे ऐसे अवसर में चतुर्थव्रत धारण कर धर्म और अर्थ की सुरक्षा करन चाहिये। यदि स्त्री धन दोनों का नाश होने का समय प्राप्त हुआ, तो केवल धर्म की साधना करने में दत्तचित्त रहना चाहिये, क्योंकि 'धर्मवित्तास्तु साधवः' सज्जन पुरुष धर्मरूप द्रव्य वाले होते हैं। धर्म के प्रभाव से धन चाहने वालों को धन, कामार्थियों को काम, सौभाग्य के चाहने वालों को सौभाग्य, पुत्रवांछकों को पुत्र और राज्य के अभिलाषियों को राज्य प्राप्त होता है, अर्थात् धर्मात्मा पुरुष जो कुछ भी चाहे, उसे उसकी प्राप्ति अवश्य होती है। स्वर्ग और मोक्ष भी जब धर्म के प्रभाव से मिल सकता है, तब और वस्तुओं की प्राप्ति हो इसमें आश्चर्य ही क्या है ? अतएव गृहस्थों को उचित है कि धर्म के समय में धर्म, धन के समय में धनोपार्जन और काम सेवन के समय में काम इस प्रकार यथाक्रम और यथासमय में सेवन करें, परन्तु परस्पर बाधा हो, वैसा करना ठीक नहीं।
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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