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________________ १७४ श्री गुणानुरागकुलकम् की खराब वेष रखने से कृपणता सूचित होती है, अतएव द्रव्य के अनुसार उचित पोशाक रखने वाला पुरुष लोकमान्य गिना जाता है और लोकमान्यता धर्मसाधन में सहायभूत होती है। १४. 'अष्टभिर्धीगणैर्युक्तः, श्रृण्वानो धर्ममन्वहम्।' अर्थात् बुद्धि के आठ गुणों से युक्त मनुष्य निरंतर धर्मश्रवण करता हुआ गुणवान् होने के योग्य होता है। धर्मश्रवण से आधि, व्याधि और उपाधि मिटती है, अभिनव पदार्थों का ज्ञान होता है, सुन्दर सद्विचारों का मार्ग देख पड़ता है, कषाय भाव कम होता है और वैराग्यमहारत्न की प्राप्ति होती है। धर्मश्रवण में बुद्धि के आठ गुण होना आवश्यकीय: है; अन्यथा धर्म श्रवण मात्र से कुछ फायदा नहीं हो सकता। ... यथा - कोई पुराणी (व्यास) रामायण वाच रहा था, उसमें 'सीताजी हरण भया' यह अधिकार आया। सभा उपस्थित एक श्रोता ने विचारा कि सीताजी हरण तो हो गये, परन्तु पीछे सीताजी होंगे या नहीं ? कथा तो समाप्त हो गई, परन्तु उस श्रोता की शंका का समाधान नहीं हो सका, तब उसने पुराणी से पूछा कि महाराज ! सब बात का तो खुलासा हुआ, किन्तु एक बात रह गई। पुराणी भ्रम में पड़ा कि क्या पत्रा फेर फार हो गया या कोई अधिकार भूल गया अथवा हुआ क्या ? जिससे श्रोता कहता है कि एक बात रह गई। आखिर पुराणी ने पूछा कि भाई ! कौन-सी बात रह गई। श्रोता ने कहा कि महाराज ! 'सीताजी हरण भया' ऐसे मैंने सुना था वह मिटकर पीछे सीताजी हुए या नहीं ? पुराणी तो उसकी बात सुनकर हसने लगा और कहा कि अरे मूर्ख ! तू इसका तात्पर्य नहीं समझा, इसका आशय यह है कि सीता को रावण उठा ले गया, परन्तु तू समझता है, वैसा कोई जंगली जानवर नहीं हुआ। इस बात
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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