________________
जैन कुलावतंसक काश्यपगोत्रीय राय साहब सेठ ब्रजलालजी की गृहपत्नी चम्पा कुँवर की कूँख से हुआ था। गृहस्थावस्था का नाम आपका रामरत्न था। आपके बड़े भाई दुलीचन्द्र तथा छोटे भाई किशोरीलाल थे और बड़ी बहिन गङ्गाकुँवर तथा छोटी बहिन रमाकुँवर थी। सं. १९५४ आषाढ़ वदि २ सोमवार के दिन खाचरोद मालवा में आपने जैनाचार्य श्रीपाद्, विजयराजेन्द्र सूरिश्वरजी महाराज के पास लघु दीक्षा और सं. १९५५ माहसुदि ५ गुरुवार के दिन आहोर (मारवाड़) में बृहदीक्षा (बड़ी दीक्षा) ली, दीक्षा के समय आपका नाम यतीन्द्रविजय रखा गया। .
चातुर्मास -
दीक्षा के अनन्तर सं. १९५४ रतलाम, १९५५ आहोर, १९५६ शिवगंज, १९५७ सियाना, १९५८ आहोर, १९५९ जालोर, १९६० सूरत-सिटी, १९६१ कुकसी, १९६२ खाचरौद, १९६३ बड़नगर एवं दस चातुर्मास आपने अपने गुरु-महाराज के साथ ही करके गुरुसेवा के साथ-साथ व्याकरण, काव्य, कोश, न्याय आदि ग्रंथों का अभ्यास किया
१. ग्वालियर से उत्तर १८ मील चंबल नदी के बाँयें किनारे पर यह कस्बा बसा हुआ है। इसको तुअर के घराने के राजा धोलनदेव ने बसाया है। अकबर की अमलदारी में यह आगरे के सुबे की तरफ था और मोहब्बत खाँ वगैरह यहाँ हाकमी करते थे। सं. १८३९ में यह सिंधिया के कब्जे में हआ, फिर अंग्रेजों के कब्जे में हआ। अंग्रेजों ने खेरातसिंह को गोहद के बदले में दे दिया। इसका दूसरा नाम 'धोलपुर' है। यह देशी राज्य की राजधानी है और इसके नीचे
६६६ गाँव हैं। २. ओसवाल जाति होने पर भी जाइसवाल गाँव के अधिवासी होने से आप जाइसवाल कहलाये। ३. आप दिगम्बर जैन शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता, श्रद्धालु और व्याख्याता थे। आप हमेशा शाम के
८ बजे से ९.३० बजे तक दिगम्बर भाई-बहिनों को शास्त्र वाँच कर सुनाते थे। इसी से दिगम्बर जैनों के तरफ से आपको राई साहब (भाईजी) की उपाधि मिली थी।
(२)