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और शेषकाल में भी साथ ही रहकर शत्रुञ्जय, गिरनार, केशरिया, अर्बुदाचल आदि प्राचीन जैनतीर्थों की यात्रा करके अपनी आत्मा को पवित्र की। ,
संवत् १९६४ रतलाम, १९६८ रतलाम, १९६९ वागरा, १९७० आहोर; ये चार चातुर्मास आपने शांतमूर्ति उपाध्यायजी श्रीमान् मोहनविजयजी महाराज के साथ में और सं. १९६५ रतलाम, १९६६ रतलाम, १९७१ जावरा, १९७२ खाचरौद, १९७८ रतलाम; ये पाँच चातुर्मास आपने साहित्य प्रेमी विद्याभूषण श्रीमद् दिपेविजयजी (आचार्य - श्रीमद्विजय भूपेन्द्रसूरिजी) महाराज के साथ में किए। इन चातुर्मासों में प्रायः श्री अभिधान - राजेन्द्र नामक प्राकृत महाकोश का संशोधन किया और इसी कारण एक ही गाँव में चातुर्मास पर भी चातुर्मास करना
. संवत् १९६७ मंदसौर, १९७३ आहोर, १९७४ सियाना, १९७५ भीनमाल, १९७६ बागरा, १९७७ बागरा, १९७९ निम्बाहेड़ा, १९८० रतलाम, १९८१ बाग (निमाड़), १९८२ कुसी, १९८३ आकोली और संवत् १९८४ गुड़ा-बालोतरा; ये बारह चातुर्मास आपने स्वतंत्र किए और इनमें आपने स्व-उपदेश बल से श्रावक-श्राविकाओं को उपदेश दे करके सामाजिक और धार्मिक समुन्नति के अनेक कार्य कराये।
१. जन्म सांबूजा (मारवाड़) सं. १९२२ भाद्रवावदि २ गुरुवार। पिता बदीचंद, माता-लक्ष्मीबाई
और जन्म नाम - मोहन, जाति - राजगुर ब्राह्मण पुरोहित। दीक्षा - जावरा (मालवा) सं. १९३३ माहसुदि २ गुरुवार। बड़ी दीक्षा - कुक्षी (निमाड़) सं. १९३९ मगसिर वदि २ सोमवार। पंन्यासपद शिवगंज (राजपुताना) सं. १९५९ फाल्गुन सुदि २। उपाध्याय पद - राणापुर (मालवा) सं. १९६६ पौष सुदि ८ बुधवार और स्वर्गवास कुकसी (निमाड़) में सं. १९७७ पौष सुदि ३ बुधवार।