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श्री गुणानुरागकुलकम्
१४९ स्त्रियों के अङ्ग प्रत्यङ्ग का अवलोकन न करना, स्त्रियों से एकांत में बात न करना, स्त्री-संबंधी कल्पना मन में न लाना, स्त्रियों से मिलने का संकेत न करना और स्त्रियों से शारीरिक संग न करना, यही ब्रह्मचारी पुरुषों का मुख्य कर्त्तव्य है। जो लोग इससे विपरीत बर्ताव करते हैं, उनका ब्रह्मचर्य खंडित हुए बिना नहीं रहता। . इसीसे महर्षियों ने कहा है कि जिस प्रकार मूसे को बिल्ली रका, मृग को सिंह का, सर्प को मयूर का, चोर को राजा का, मनुष्यादि प्राणियों को कृतान्त (यम) का और कामी को लोकापवाद का भय रहता है, उसी प्रकार ब्रह्मचारी पुरुषों को स्त्रियों से नित्य भय रखना चाहिए, क्योंकि स्त्रियाँ स्मरण मात्र से मनुष्यों के प्राण हर लेती हैं, अतएव मनुष्यों को चाहिये कि अपनी योग्यता उच्चतम बनाने के लिये मन को विषय विकारों से हटाने का अभ्यास करें,
क्योंकि 'अप्पवियारा बहुसुहा' जो अल्प विकारी होते हैं, वे जीव • बहुत सुखी हैं, ऐसा शास्त्रकारों का कथन है।
. कदाचित् संयोगवश मानसिक विकार कभी सतावें, तो उनको शीघ्र रोकने की तजबीज करना चाहिये। ' अर्थात् स्त्रियों के रूप वगैरह देखने से जो मानसिक विकार उत्पन्न होवे, तो यह विचार करना चाहिये कि स्त्रियाँ मेरा कल्याण नहीं कर सकतीं, किन्तु मुझे इनके संयोग और वियोग से जिस समय अनेक दुःख होंगे, उस समय स्त्रियाँ कुछ सहायक नहीं हो सकेंगी। स्त्रियों में फँसने से पहले संकट भोगने पड़ते हैं, फिर .कामभोग मिलते हैं, अथवा प्रथम कामभोग मिले, तो पीछे से संकट भोगना पड़ते हैं, क्योंकि स्त्रियाँ कलह को उत्पन्न करने वाली होती