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________________ १३२ श्री गुणानुरागकुलकम् आदि पदार्थ देखे?, किसने पुन्य पाप का फल भुगता?, स्वर्ग नरक मोक्ष कहाँ है? केशलुंचनादि, सब कार्य क्लेशरूप है, व्रतादि ग्रहण करना भोगों से वंचित रहना है, शास्त्रों का अभ्यास केवल कण्ठशोष है, धर्मोपदेश देना विचारे मूर्ख लोगों को ठगना है, देव गुरु सा-धार्मिक भक्ति में द्रव्य लगाना व्यर्थ है। दुनिया के अन्दर अर्थ और काम को छोड़कर दूसरा कोई पुरुषार्थ नहीं है। क्योंकि - सब जगह अर्थवान् ही प्रशंसनीय है, लिखा भी है कि - मुत्तूण अत्यकामो, नो अन्नो कोई अत्थि परमत्थो। जस्स कए चइऊणं, दिट्ठसुहमदिट्ठ अहिलासो ॥१॥ भावार्थ - अर्थ और काम को छोड़के संसार में कोई ऐसा परमार्थ नहीं है कि जिसके लिए मिले हुए सुखों को छोड़कर अदृष्ट सुखों की आशा की जाय। क्योंकि - जाति, विद्या, रूप, कलासमूह, गुण और विज्ञान; ये सब अर्थ (धन) से ही शोभा को प्राप्त होते हैं। इस प्रकार विषयवश हो अधमबुद्धिलोग स्वयं परमार्थमार्ग से पतित होते हैं, और दूसरों को भी दुर्गति के भाजन बनाते हैं। इससे ये लोग 'अधम' हैं। ____जैसे - मूर्खमति मृग व्याघगीत को सुखरूप मानता हैं, पतंग सहर्ष हो दीपशिखा में पड़ता है। इसी तरह अधम मनुष्य दुःखरूप अर्थ और काम की वासना में सुख मानते हुए नरकादि स्थानों के पात्र बनते हैं। अर्थात् अधम लोगों के सब व्यापार स्वात्मविनाश के लिए होते हैं। जो महानुभाव सदुपदेश और आगमप्रमाण मिलने पर भी अपने नास्तिकपन को नहीं छोड़ते वे भी अधमपुरुषों की श्रेणी में ही समावेश किये जाते हैं।
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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