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________________ महाराज के परम श्रद्धालु सीयाणा (मारवाड़) निवासी शा भीमाजी छगनलाल जैन पोरवाड़ ने खास वितरण करने (मेंट देने) के लिए छपवाया है, अतः उन्हों को इस उदारता और ज्ञानभक्ति के लिए हार्दिक धन्यवाद दिया जाता है। ॐ शांतिः ! शांतिः !! शांतिः !!! विक्रम संवत् १९८५ प्रथम श्रावण सुदि ५ मुनि श्री यतीन्द्रविजय म. थराद (उत्तर-गुजरात) .. . पत्र-सम्पादक और विद्वानों की सम्मतियाँ (१) गुणानुराग-कुलकम् - इसका आकार मध्यम, पृष्ठ संख्या ३८६ है। टाइप बनिक जैन ढंग का है। छपाई और कागज अच्छा है, जिल्दबंधी है। इस पुस्तक में श्रीजिन, हर्षगणी निर्मित २८ आर्यावृत्त प्राकृत-भाषा में हैं परन्तु मुनिराज श्री यतीन्द्रविजयजी ने उसका विस्तृत विवेचन करके ग्रंथ का आयतन मूल से कई गुना बढ़ा दिया है। मुनिवरजी ने प्राकृत गाथाओं की संस्कृत-छाया, उसका शब्दार्थ और भावार्थ भी लिख दिया है। आपका 'विवेचन' बहुत सुन्दर और शिक्षादायक है। सरस्वती, पूर्ण संख्या २१२, अगस्त सन् १९१७। (२) गुणानुरागकुलक - प्राकृत ग्रंथ के विस्तृत हिन्दी विवेचन को आद्योपांत मनन करने से मुझे इतनी शांति उत्पन्न हुई कि जिसे लेखिनी के द्वारा प्रगट नहीं की जा सकती। विवेचन की हिन्दी सरल होने से
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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