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आबाल-वृद्ध सभी के समझ में आ सकती है। दरअसल में हिन्दी-संसार जिस चीज को चाहता था, इसने उसकी कमी को पूर्ण की है। ता. १७.५.१९
पं. शास्त्री-पन्नालाल नागर
मु. रतलाम (मालवा)
(३) x x x विवेचन क्या है ? मानो सद्गुणों का खजाना है। देखने मात्र से इसकी विशालता, सुन्दरता और शुद्धता पर मुग्ध हुए बिना नहीं रहा जाता। इसको एक बार वाँचने से आत्मा में शांति का श्रोत वहने लगता है और दोष-दृष्टि कोशों दूर भग जाती है। संवत् १९८०
___पं. दुर्लभराम शास्त्री आसोज सुदि ७
मु. झाबुआ (मालवा) (४) + + + पुस्तक का आयतन जितना मनोरंजक है, इससे भी अधिक. उसका विवेचन चित्त को शांति पहुँचाने वाला है। अवगुण-दृष्टिरूप रोगों को निर्मूल करने के लिए यह पुस्तक एक प्रकार की रामबाण औषधि के सदृश है। इसका जितना वर्णन किया जाय, उतना ही कम है। मुः बनारस सीटी ता. २७.५.२०
__पं. शिवदत्त, एफ.ए.
(५) +++ ++ आपका सुन्दर विवेचन किस व्यक्तिगत दोष-दृष्टि को छोड़ने के लिए प्रेरित नहीं करता। मुझे विश्वास है कि इस हृदयानन्दी विवेचन को वाँचने वाला मनुष्य अपनी पाशविक-वृत्तियों के लिए एक बार अवश्य लाचार होगा और अपनी दोषी आत्मा को निन्देगा। संवत् १९८१
साहित्याचार्य - पं. मथुराप्रसाद दीक्षित चैत्र सुदि २
मु. रतलाम (माळवा)