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श्री गुणानुरागकुलकम्
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! आप राजा का भोजन एक बार अपने यहाँ कराओ। आप कहना कि महाराज ! इस दास के घर को भी किसी दिन पधार कर सुशोभित करिये और अपने चरणकमल से पवित्र कीजियेगा। इस प्रकार जब राजा से निवेदन किया, तो राजा ने स्वीकार कर लिया और एक दिन नियत कर दिया कि फलाने दिन हम आवेंगे। सुविद्या .से जब यह आ कर कहा, तो उसने अपनी चतुराई से घर को ऐसा सुसज्जित किया कि जैसे राजा महाराजाओं का होता है और वैसी ही सब सामग्री इकट्ठी भी कर ली। अपनी बुद्धिमानी से राजा की रुचि के वे वे भोजन बनवाये कि जब राजा आया, तब घर की शोभा देखकर और भोजन पाकर अत्यन्त प्रसन्न और आश्चर्य निमग्न हुआ, क्योंकि जब से रानी सुविद्या इसके यहाँ से चली गई थी, राजा के यहाँ भी ये बातें न थीं। राजा प्रसन्न होकर पूछने लगा कि कहो - जगत सेठ ! तुम्हारे सन्तान क्या हैं ? उसने उत्तर दिया कि 'महाराजाधिराज ! आपकी कृपा से दो पुत्र हैं और एक धर्मपुत्री है। वे सब आपके दर्शन की अभिलाषा में बैठे हैं। राजा ने कहा कि उनको बुलाओ ? यह सुनकर दोनों लड़कों ने तो आकर प्रणाम किया और राजा ने जो पूछा, उसका यथोचित् उत्तर दिया, जिससे
राजा बहुत प्रसन्न हुआ, क्योंकि सुविद्या ने इनको पहले से ही सब सिखा-पढ़ा दिया था कि राजाओं से यों बोलते चालते हैं। जब राजा
पुत्री के लिए पूछा, तो सेठ ने कहा कि महाराज ! वह उस कोठरी में है। आप वहाँ ही पधार कर उसको दर्शन देकर कृतार्थ कीजिए ।
यह सुन राजा ज्यों ही उठ कर वहाँ गया, त्यों ही सुविद्या ने उठकर साष्टाङ्ग नमस्कार पूर्वक राजा का अति आदर और सत्कार किया। राजा को उसकी सूरत देखते ही रानी सुविद्या का स्मरण