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________________ श्री गुणानुरागकुलकम् मार्गाभिमुख और मार्गपतित तथा अविरतसमग्दृष्टि आदि भी ग्रहण करना। जैसा अभ्यास वैसा असर - अभ्यस्त वस्तुओं का इतना दृढ़ संस्कार हो जाता हैकि - वे भवान्तर में भी नहीं भूली जा सकती। जो लोग हमेशा सद्-गुणों का ही अनुकरण किया करते हैं उनको भवान्तर में विशेष रूप से वे गुण प्रगट होते हैं। इसी प्रकार दुर्गुण का अभ्यास होने से सद् गुण सद् गुण की अपेक्षा अधिकता से पैदा हुआ करते हैं। इस जन्म में दया, दान, उदारता, विनय आदि सद्गणों की प्राप्ति का अभ्यास करते समय यदि उसमें कुछ स्वभाव.का परिवर्तन हो गया, तो. भवान्तर में भी सद् गुण प्राप्त होने पर भी कुछ परिवर्तन अवश्य हुए बिना नहीं रहेगा। ... मनुष्यादि प्राणी बालकपन से अपने माता पिता आदि के आचरणों को देख, प्रायः उसी तरफ झुक जाया करते हैं। अर्थात् वैसा ही व्यवहार सीख लेते हैं, और उसी के अनुसार प्रवर्तन करने लग जाते हैं क्योकि शुरू से उनको वही अभ्यास पड़ जाता है, इसी से मनुष्यादि प्राणियों की जीवनयात्रा का मार्ग सर्वथा दूसरों के आचरणों पर ही निर्भर है। . इसके सिवाय पाश्चात्य विद्वानों ने इसका अनुभव भी किया है कि - यदि मनुष्य उत्पन्न होते ही निर्जन वन में रक्खा जावे तो वह बिल्कुल मानुषी व्यवहार से विरुद्द पशुवत चेष्टा करने वाला बनजाता है। सुनते हैं कि -
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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