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श्री गुणानुरागकुलकम्
. तदनन्तर शुभ दिन, वार और नक्षत्र देखकर सेठ ने सकुटुम्ब यात्रा के लिए प्रयाण किया। सब लोग गाँव के बाहर तक पहुँचाने आये। इस अवसर में धन्नूलाल ने 'विनाशकाले विपरीत बुद्धि' इस वाक्य का अनुकरण कर विचारा कि - आज कोई अपशकुन हो जावे तो ठीक है, जिससे सेठ यात्रा न कर सके, परन्तु सेठ के भाग्योदय से सब शुभ शकुन ही हुए। तब धन्नूलाल शीघ्र स्वयं अपनी नाक काट कर सेठ के सम्मुख आया, उस समय साथ के लोग बोले सेठ साहब ! आज शकुन खराब मालूम होते हैं, इससे प्रयाण करना इच्छा नहीं है। कहा भी है कि - - मदपानी पागल पुरुष, नकटा संमुख आय। खोड़ा भूखा बाँझनी, न करहु गमन कदाय॥
भावार्थ : अगर दारू का घड़ा, पागल, नकटा, लूला, भूखे मरता : मनुष्य और बाँझनी स्त्रियाँ गमन करते समय सामने मिल जावें, तो पीछे लौट
आमा ही हितकर है, किन्तु आगे जाना ठीक नहीं है। .: इस बात को सुनते ही सेठ सकुटुम्ब पीछा चल आया और सोचा कि - फिर दूसरे दिन अच्छा शकुन देखकर प्रयाण करूंगा। इधर चौधरी भी आनन्द मनाता हुआ शाम को बाजार में आया, तब उसे नकटा देखकर सब लोग उपहास करने लगे और सब जगह वह तिरस्कार दृष्टि से देखा जाने लगा, क्योंकि संसार में अत्यन्त सफाई से बोल कर उद्वेग करने वाला, हास्य से मर्मों का उद्घाटन करने वाला, सद्गुणविहीन और गुणीजनों का निन्दक मनुष्य करौती के . समान माना जाता है, अर्थात् - इस प्रकार का मनुष्य किसी का प्रिय नहीं रहता है।