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________________ 34 356 575 126 403 439 138 569 89 487 30 438 418 431 367 8b 219 218 85 शक्त्याविरुष शक्तिस्तु नित्या शब्दपुद्गलवत् शब्दप्रयोगता शब्दप्रयोगसा शब्दसामर्थ्य शब्दस्यायं विवर्तः शब्दात् यजत शब्दातिरिक्त शब्दे कर्मणि शरीरं तु ममे शरीरान्तर शरीरालम्बन शवाद्वा शास्त्रस्य विषयो शास्त्रे चानेक शिष्यः कश्चित् शीतातपौ शरी शुक्ल: पट इति शुष्के स्थिनि शेषो नामाविव श्येनादीनाम् शोच्यो यत्राश्म श्राद्ध कृद्वेद श्रोतुः स्वार्थांनु 211 272 345 272 510 343 219 571 519 358 58 252 संक्रामति न संज्ञामात्रे विवा संबन्धमात्रे संपूर्णीय दृढा संवित्प्रसव संसारकारा संसारबन्धना मंसारस्य स्वनादि संसृष्टाश्च पदा संहत्यकारिपक्षे स एव समुदायेन स एव दृश्यते स एव वेदेऽपि . स एव वैपरीत्ये स एव बुद्धि सकर्मजन्य संख्यादियोगि स चायमात्मधर्मों सचेतनश्चिता सचेतनश्चिता सजातीयविजातीय सतस्तु नैव सति संयोगेऽपि स तु भावार्थतः सत्यपि प्रेरणा सत्त्वं नांना स्वभा सत्त्वे च संशयो सन्तः प्रयतमाना सन्तत्युच्छेद सन्तनि मिविशेषः सदसव्यपदेश 381 281 431 501 449 86 438 275 575 45 404 392 125 439 448 551 124 122 305 317 433 439 342 317 473 पटपक्षादि 677 सदसद्ध्यति
SR No.002266
Book TitleNyayamanjari Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK S Vardacharya
PublisherOriental Research Institute
Publication Year1983
Total Pages794
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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