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________________ 32 लोग्नां नित्य 520 443 64 677 599 . 718 44 342 . . 13 43 439 346 291 205 551 551 51 446 260 201 295 159 517 315 313 123 309 311 298 211 32 471 337 268 44 487,519 वक्तव्या गुणित: वक्ता वाक्यं समु वक्त्रान्वमा यि वक्ता स्वप्रत्यये वफ्रः पन्था न वने वसेत्सुनि वरं हि जातास्ति वर्णा एव भव वर्णानां श्रवणे वस्स्वेिते प्रकृति वर्तते तदसं वित्त वर्तमानक्षण वर्तवान क्षणो वर्तवानापदेश वर्तमानकनिष्ट वर्तमानःक्षण वर्षातपाभ्यां वस्तुतोऽसंभवो वस्तुनोङ्गीकृता वस्तुस्वरूप वस्त्वेव गृद्ध्यचे वहति व्यवहार वहत्येतानि वाक्यार्थ मन्अते. वाक्यार्थभितये वाक्यार्थःपरमार्थ वाक्येभ्य एव वाग्योगावित वाचश्व प्रणय वाच्य तत्रापि वाच्यमुत्तरमतो वाद तु निर्णय वादेवात्तजयः वासनाविषयज्ञान वास्तवत्त्वे स्थिरो विकल्पविषये विकल्पो नाम विकारित्वं तु विकृतिश्च तस्या विचिसहकार्या विचित्रा च पदार्थां नां विज्ञानधन एवैको विज्ञानमिति . विज्ञानाद्वैत विज्ञानायौगपद्य विदधत्सुरखादि विदधद्गर्तमा विधिवीर्यप्रभा विधेरपेक्षे द्वे विधेरेष स्वभाव । विधेर्लक्षणमेता विधेश्चतुरवस्थत्वे विधौ विधुरतां विनश्वरस्वभावे विना च नित्य विना नित्येन विना फलोप विनाशरहित विपक्षवृत्तित्व भाति बहि 409 412 310 128 115 128 92 130 32 518 306 . 357 540 318 138 • 218 142 235 294 444 -315 610 449 254
SR No.002266
Book TitleNyayamanjari Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK S Vardacharya
PublisherOriental Research Institute
Publication Year1983
Total Pages794
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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