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५८ सम्बन्ध-दर्शन-अरिहंत और हम ...................................................... देह) के अवलम्बन द्वारा अपने सर्व पापों का क्षय कर भाव अरिहंत रूप स्वयं के आत्म-स्वरूप का साक्षात् दर्शन कर सकता है। क्योंकि “अरिहंत" शब्द अरिहंत परमात्मा का वाचक होने से कथंचित् “अरिहंत" स्वरूप है। इसी कारण “अरिहंत" "नमो अरिहंताणं" तथा "अह" आदि महामंत्र के ध्यान में तन्मय होने से अरिहंत परमात्मा के साथ तन्मयता सिद्ध होती है। यह तन्मयता अरिहंत के साक्षात् दर्शनरूप है। इसीलिए अरिहंत के ध्यान में तन्मय साधक को आगम में “भाव अरिहंत" कहा
अक्षर, मंत्र स्वरूप है। मंत्र मात्र तत्व से नाद स्वरूप है। जब अर्ह आदि मंत्र . नाद रूप में परिणमित होते हैं तब परमानन्द का अनुभव होता है और मंत्र का वास्तविक फल प्राप्त होता है। सिंहतिलकसूरिकृत "मन्त्रराज-रहस्य" में अनाहत का अरिहंत ऐसा अर्थ किया है। इस प्रकार मन्त्रयोग (जपयोग) की साधना अरिहंत की .. साधना है और उसी के द्वारा भाव-अरिहंत के दर्शन होते हैं। ___ अरिहंत या तत्सम्बन्धी अन्य मन्त्रों का स्वरूप, जप की पद्धति और परिणाम भी .. अनेक हैं। परंपरा में ऐसा प्रचलित है कि “अरिहंत" ऐसे मात्र चार वर्ण रूप इस मन्त्र का ४00 (चार सौ) बार जप करने से ध्यानी सम्यग्दृष्टिं आत्मा एक उपवास का फल पाता है। ___ मनोवैज्ञानिकों ने यौगिक चक्रों के स्थान पर “अरिहंत" शब्द से किये जाने वाले जप का महत्व बताते हुए कहा है
१. मूलाधार चक्र में “अरिहंत" मंत्र का ध्यान करने से नीरोगता आती है। २. स्वाधिष्ठान चक्र में “अरिहंत" मंत्र का ध्यान करने से वासना-क्षय होता है। ३. मणिपूर चक्र में “अरिहंत" मंत्र का ध्यान करने से क्रोध का क्षय होता है। ४. अनाहत चक्र में “अरिहंत" मंत्र का ध्यान करने से मान का क्षय होता है। अक्षर-विज्ञान के अनुसार अरिहंत शब्द का विज्ञान इस प्रकार है
"अ" यह वायु बीज है। वायु हल्की होने से ऊपर उठती है। यह शब्द ऊपर उठाने में सहायक होता है। जैसे मिट्टी के लेप से युक्त तुम्बी ऊपर नहीं उठ सकती परंतु लेप निकल जाने पर हल्की होने से वह ऊपर तैरती है वैसे ही जीव कर्मों के कारण भारी है। अरिहंत का "अ" कर्मक्षय में सहायक होता है। वायु वाहन का प्रतीक है। वह श्वासोश्वास के द्वारा निर्धारित किया जाता है। 'अ' को श्वासोश्वास से संयुक्त कर जपने से समाधिभाव जगते हैं। इस प्रकार 'अ' वायुबीज होकर समाधि का सहायक है।
"रि" यह अग्निबीज (दाहबीज) है। इसका काम है जलाना। इसे रूमान्तरित करना चाहिये। इसमें मन्त्र को हमारे भीतर गतिमान किया जाता है। जैसे गाड़ी केवल