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सम्बन्ध-दर्शन-अरिहंत और हम
जब उठती है तब यह बहुत छोटी होती है। विस्तार की रचना के लिये यह केन्द्रीय नाड़ी संस्थान (Central Nervous System) के पास पहुंचती है। वहाँ दो तरह .. की कार्य प्रणाली मौजूद होती है-ऐच्छिक (Voluntary), और अनैच्छिक (NonVoluntary)। तान्त्रिक संस्थान इन दोनों में से पहले इस वृत्ति को ऐच्छिक तन्त्र को सौंपता है और हमारी वृत्ति इच्छा के साथ मिल जाती है। वृत्ति जब इच्छा को मिलती है तब तक रूखी याने रसविहीन होती है। जब तक इसमें रस शामिल न हो पाये वृत्ति कुछ नहीं कर सकती है। अतः इच्छा इसे रस दिलाने के लिए, हमारी एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथि Pituitary Gland होती है, उसके पास ले चलती है। अब इसका .System देखें__ यह बड़ी भावनात्मक ग्रंथि है। चित्त के साथ मिली वृत्ति के यहाँ आते ही जैसी भावना हो वह रसदान कर सकती है। इसकी रासायनिक प्रक्रिया बड़ी नाजुक फिर भी आज्ञांकित होती है। यह ग्रंथि हमारे कपाल में दोनों भौहों के बीच में भूरे रंग की राई : के दो दानों के आकार में मांस पेशियों से बनी होती है। दाहिने विभाग में ऋण (Negative) विद्युत और बाँये विभाग में धन (Positive) विद्युत होती है। Science ने इन विभागों के Adenophysis और Neurophysis नाम दिये हैं। : इच्छा और वृत्ति के यहाँ पहुंचने पर भी यह पहले सक्रिय नहीं होती है जब तक इसे केन्द्रीय नाड़ी संस्थान से आदेश न मिले। आदेश मिलने पर पहले Neurophysis सक्रिय होती है और ऐच्छिक वृत्ति से सम्पर्क करती है। सम्पर्क के द्वारा Adenophysis से कुछ Harmones सावित होते हैं। इस समय वृत्ति को जानने में इस ग्रंथि की होशियारी कहो या उतावलापन यह उत्तेजित हो. ही जाती है। उत्तेजित होकर Cerebral Cortex द्वारा यह अपनी मानी हुई सहेली ग्रंथि Adrenaline gland को Message भेजती है। यह ग्रंथि जो गुर्दे (Kidney) के ऊपरी हिस्से पर होती है। काम, क्रोध, भय, तनाव आदि के समय इसमें से ऐडेनिन नाम का एक नाव पैदा होता है। इस नाव से हृदय की धड़कन बढ़ जाती है, सांस तेज चलने लगती है। यह भी cerebral cortex से प्रतिक्रिया का आदेश पाती है। यहां तक चली ऐच्छिक रचना क्रिया अपनी वृत्ति को अनैच्छिक रचना क्रिया (Non-Voluntary Mechanism) को सौंप देती है। तब अन्य Pineal, Gonads आदि ग्रंथियां उत्तेजित होकर वृत्ति को प्रतिक्रिया, आदेश, मार्गदर्शन और सहयोग प्रदान करती हैं।
परमात्मा ने संज्ञा-वृत्ति के संचालन के तीन प्रकार बताये१. वृत्ति को उत्पन्न ही न होने देना।
२. यदि साधक की दशा इतनी प्रगतिमयी न हो और वृत्ति उठ भी जाय तो उसके Voluntary Mechanism के पास आते ही इस पर Control कर ले। वृत्ति को अनैच्छिक रचनाक्रिया को सौंपने तक नहीं पहुँचने देता है। क्योंकि ऐच्छिक