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अरिहंत का तत्व-बोध ११ अरह । -अर्हत्-पूजा के योग्य, पूज्य अरह -अरहस् प्रकट-जिनसे कुछ भी न छिपा हो। अरह -अरथ-परिग्रह से रहित। अरिह -योग्य होना, पूजा करना। अरुह -जन्म रहित, मुक्त आत्मा। . अरुह -पूजा के योग्य, पूज्य। अरहंत -अरहोन्तर-सर्वज्ञ-सब कुछ जानने वाला।
अरहंत -अरथान्त-निस्पृह, निर्मम। • अरहंत -अरहयत्-अपने स्वभाव को नहीं छोड़ने वाला। . अरिहंत -रिपु-विनाशकं।
अरुहंत -अरोहत्-नहीं उगता हुआ, जन्म नहीं लेता हुआ। संस्कृत भाषा के अनुसार अरिहंत शब्द की व्युत्पत्ति
अर्ह धातु ‘स्तुस्यकर्ता और योग्य होना दो अर्थ में प्रयुक्त होती है। इस धातु को "सुगद्विषार्ह सत्रि-शत्रु-स्तुत्ये" सूत्र से अतृश् प्रत्यय, अनुबन्ध लोप हुआ और व्यञ्जनाद-दन्ते से "न्त" का आदेश हुआ “उच्चाहति" सूत्र से संयुक्त व्यंजन "ई" के पूर्व में स्थित हलन्त व्यंजन "र" में क्रमशः विकल्प से "उ-अ और इ" का आगम होता है और अरुहंत, अरहंत और अरिहंत ये तीन रूप बनते हैं।
इन तीनों रूपों में कुछ विभिन्नता दर्शित होती है किन्तु वस्तुतः इनके मौलिक अर्थ में कोई अन्तर नहीं है। केवल नियुक्ति पद्धति के अनुसार जो अर्थ-वैविध्य होता है वह इस प्रकार हैअरिहंत शब्द के तीन रूप
अरहंत-अरहंत-अर्थ वैविध्य की दृष्टि से शब्द वैषम्य में अन्तर पाया जाता है परन्तु स्वरूप से सब कुछ समान है। धात्वर्थ की दृष्टि से शब्द प्रयोग में अरहंत शब्द उपयुक्त रहा है। . कल्पसूत्र में अरह शब्द की व्याख्या में रह शब्द को महत्व देते हुए रह का अर्थ रहस्य करके प्रकट अप्रकट सर्व रहस्यों के ज्ञाता अरहंत ऐसा अर्थ किया गया है। अर्थात् परमात्मा से कोई भी रहस्य अज्ञात नहीं है। अरहंत शब्द की प्रस्तुत व्याख्या में सर्वज्ञत्व की विशेष विलक्षणता बताई गई है।
- आवश्यक नियुक्ति में योग्य होने के अर्थ में “अरहंति" शब्द दिया है। यहाँ योग्यता के तीन अर्थ अभीष्ट हैं__१-वन्दन नमस्कार के योग्य