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अरिहंत का तत्व-बोध ९ ......................................................
· अरिहंत के मुख्य तीन प्रकार हैं-अवधिज्ञानी अरिहंत, मनःपर्यवज्ञानी अरिहंत और केवलज्ञानी अरिहंत। अरिहंत के गमनागमन से लेकर निर्वाण तक के मुख्य पाँच अवसर होते हैं, जिन्हें कल्याणक कहा जाता है। अरिहंत अवस्था के ये पाँचों अवसर उपरोक्त तीन प्रकारों में इस प्रकार विभाजित होते हैं
अवधिज्ञानी अरिहंत ___ -च्यवन कल्याणक एवं जन्म कल्याणक मनःपर्यवज्ञानी अरिहंत -प्रवज्या कल्याणक केवलज्ञानी अरिहंत -केवलज्ञान कल्याणक एवं निर्वाण कल्याणक
अरिहंत का उपरोक्त विभाजन-उनकी पूर्वनियोजित रूपरेखा है। सिर्फ केवलज्ञान के बाद ही उनका आर्हन्त्य प्रकट नहीं होता, परन्तु जन्म के पूर्व ही यह निर्धारित रहता है। इसी कारण सामान्य केवली और अरिहंत में अन्तर है। मोक्ष पाने की योग्यता वाले अर्थ से तो सामान्य केवली अर्थ भी बैठ सकता है परन्तु योग्यता के साथ पूज्यप्ता वाला अर्थ यहाँ अन्तर स्पष्ट करता है।
सामान्य केवली और तीर्थंकर केवली में वीतरागता की दृष्टि से कोई अन्तर नहीं है, परन्तु बाह्य दृष्टि से बहुत अन्तर है। यह अन्तर अरिहंत के पूजित होने के अर्थ से सिद्ध होता है।
दूसरा आगम प्रमाण इस अर्थ की और पुष्टि करता है किअरिहंत के व्युच्छिन्नं (मुक्त) होने पर, अरिहंत प्रज्ञप्त धर्म के व्युच्छिन्न होने पर और पूर्वगत (चतुर्दशपूर्वो) के व्युच्छिन्न होने पर। इन तीन कारणों से मनुष्यलोक और देवलोक में अंधकार होता है। इसी प्रकारअरिहंतों के जन्म होने पर, अरिहंतों के प्रव्रजित होने के अवसर पर और
अरिहंतों के केवलज्ञान उत्पन्न होने के उपलक्ष्य में किए जाने वाले महोत्सव पर मनुष्यलोक और देवलोक में उद्योत होता है। देव समुदाय मनुष्य लोक में आता है, देवों में कलकल ध्वनि होती हैं; देवों के इन्द्र, सामानिक देव, त्रायत्त्रिंशक देव, लोकपाल देव, लोकान्तिक देव, अग्रमहिषी देवियाँ, सभासद, सेनापति तथा आत्मरक्षक देव तत्क्षण मनुष्यलोक में आते हैं। __इस सूत्र में अरिहंत धर्म-कथन के साथ चार कल्याणकों का कथन प्रस्तुत किया गया है।
१. स्थानांगसूत्र-अ. ३, उ. १, सूत्र १३४ ।