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________________ ...................................................... २५० स्वरूप-दर्शन __ ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार रूप पंचाचार के द्वारा समस्त जीवन कथन की व्यवस्था समझायी जाती है। आगार धर्म के माध्यम से १२ व्रतों का व्रतविधान प्रस्तुत होता है। अणगार धर्म में चातुर्याम या पंचयाम धर्म की व्यवस्था नियुक्त होती है। इसके अतिरिक्त सामान्य चर्या (समाचारी) का विशेष विधान भी प्रस्तुत किया जाता है। श्रमण-श्रमणियों के लिये नियोजित समाचारी में श्रमण जीवन की समस्त चर्याओं के पालन की विधि समाहित है प्रथम सामान्यतः दशविध समाचारी का विधान है१. आवश्यकी उपाश्रय से बाहर जाते समय आवश्यकी आवश्यक कार्य के लिए जाता हूं-कहे। २. नैषधिकी कार्य से निवृत्त होकर आए तब नैषधिकी-मैं निवृत्त हो चुका हूं-कहे। ३. आपृच्छा अपना कार्य करने की अनुमति लेना। ४. प्रतिपृच्छा दूसरों का कार्य करने की अनुमति लेना। ५. छन्दना भिक्षा में लाए आहार के लिए साधर्मिक साधुओं को आमंत्रित करना। ६. इच्छाकार-. कार्य करने की इच्छा जताना, जैसे-आप चाहें तो मैं आपका कार्य करूं? . ७. मिथ्याकार भूल हो जाने पर स्वयं उसकी आलोचना करना। ८. तथाकार आचार्य के वचनों को स्वीकार करना। ९. अभ्युत्थान आचार्य आदि गुरुजनों के आने पर खड़ा होना, सम्मान करना। ज्ञान आदि की प्राप्ति के लिए गुरु के समीप विनीत भाव से रहना अथवा दूसरे साधुगणों में जाना। दिवस समाचारी में प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे प्रहर में ध्यान, तीसरे प्रहर में भिक्षाचारी और चतुर्थ प्रहर में स्वाध्याय का विधान है।२ । १०. उपसम्पदा १. क-भग. श. २५, उद्दे. ७, सू. १९४। ख-स्था. अ. १०, सू. ७४९। ग-उत्तराध्ययन-अ. २६, गा. २-३-४। २. उत्त. अ. २६, गा.१२।
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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