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केवलज्ञान-कल्याणक २४९
___ इस धर्म तीर्थ की स्थापना में मुख्यतः दो प्रकार के धर्म बताये जाते हैं-आगार. धर्म और अणगार धर्म। अणगार धर्म से साधु-साध्वी और आगार धर्म से श्रावकश्राविका रूप धर्म की प्ररूपणा और संघ की स्थापना होती है।
संघ व्यवस्था
परमात्मा अरिहंत ने आत्मसमाधि को महत्त्व देते हुए आत्म व्यवस्था में ही स्थिर होने का और संकल्प विकल्पों के समस्त आंदोलनों को समाप्त करने की दिशा में हमेशा प्रयत्नशील बने रहने का कहा है। इसके लिए साधक को एकान्तवास आदि आवश्यक होता है। लेकिन व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास सदा संघ सापेक्ष रहा है। इसी कारण आत्मव्यवस्था के साथ संघव्यवस्था को संयुक्त कर परमात्मा ने तीर्थसंघ की स्थापना की। जिसकी स्थापना होवे उसकी व्यवस्था भी अनिवार्य होती है। अतः परमात्मा संघ की सुंदृढ़ व्यवस्था के लिए कुछ निश्चित अनुशासन और समाचारी (चर्याएं) के नियम प्रदान करते हैं। धर्मशासन युक्त संघ में अनुशासन सर्वोपरिता के लिये समुदाय को गणों (विभागों) में विभक्त किया। गणों की सारणा-वारणा और शिक्षा-दीक्षा की विशेष सुचारु व्यवस्था के लिए कुछ अन्य पद भी निश्चित किए। जैसे
१. आचार्य, २. उपाध्याय, ३. स्थविर, ४. प्रवर्तक, ५. गणी, ६. गणधर और ७. गणावच्छेदक। .
सूत्र के अर्थ की वाचना देना और गण का सर्वोपरि संचालन का कार्य आचार्य के . जिम्मे होता है।
सूत्र की वाचना देना, शिक्षा की वृद्धि करना उपाध्याय के जिम्मे होता है। ___ श्रमणों को संयम में स्थिर करना, श्रामण्य से डिगते हुए श्रमणों को पुनः स्थिर करना, उनकी कठिनाइयों का निवारण करना स्थविर के जिम्मे होता है।
आचार्य द्वारा निर्दिष्ट धर्म-प्रवृत्तियों तथा सेवा कार्य में श्रमणों को नियुक्त करना प्रवर्तक का कार्य है।
श्रमणों के छोटे-छोटे समूहों का नेतृत्व करना गणी का कार्य है। श्रमणों की दिनचर्या का ध्यान रखना गणधर का कार्य है।
धर्म-शासन की प्रभावना करना, गण के लिए विहार व उपकरणों की खोज तथा व्यवस्था करने के लिए कुछ साधुओं के साथ संघ के आगे-आगे चलना, गण की सारी व्यवस्था करना गणावच्छेदक का कार्य है। इनकी योग्यता के लिए विशेष मानदण्ड स्थिर किए। इनका निर्वाचन नहीं होता है। स्थविरों की सहमति से ये आचार्य द्वारा नियुक्त किए जाते हैं।