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२३६ स्वरूप-दर्शन त्रिपदी, षद्रव्य और नवतत्त्व से स्पष्ट होता है। आत्मा का लोक के साथ सम्बन्ध और विच्छेद का मूल इस प्रकार है
पर काम करतात पड का नाम का साथ समाजात
द्रव्य
गुण
पर्याय
ध्रौव्य -----
चेतन - जीव
-जीव
उत्पाद
उत्पाद
व्यय
पुद्गल (जड़)
आश्रव संवर निर्जरा मोक्ष
अजीव पुण्य पाप
बन्ध
धर्म अधर्म आकाश काल :
प्रत्येक जीव का अपना स्वतंत्र अस्तित्व है। अपने अस्तित्व का बोध भी सर्व जीवों को होता है। परंतु अज्ञान के कारण वह देहभाव को जीव के साथ एकरूप प्रतीत करते हैं। परिणामतः क्रिया की प्रवृत्ति भी वैसी होती है। जब भी यह एकरूपता हटती है, जीव अपने अस्तित्व बोध की खोज शुरू करता है। अरिहंत परमात्मा अपनी प्रथम देशना में उसकी अनुसंधान-यात्रा का उद्घाटन करते हैं। इस जिज्ञासा को रहस्य के माध्यम से प्रकट करते हुए कहते हैं, अस्तित्व बोध के बाद सर्वप्रथमं प्रत्येक जीव यह जानना चाहता है कि
"के अहं आसी ? के वा इओ चुओ इह पेच्चा भविस्सामि?' मैं कौन था और यहां से च्युत होकर कहां जाऊंगा?
अस्तित्व के इस प्रश्न का समाधान हमें विश्व का स्वरूप क्या है और इसमें हमारा क्या स्थान है, यह सोचने के लिए बाध्य करता है। अतः अरिहंत परमात्मा देशना के माध्यम से संपूर्ण विश्व (Universe) व्यवस्था को छः द्रव्यों (Substances) के माध्यम से प्रतिपादित करते हैं। वे छह द्रव्य हैं
१. जीव (Soul, Substance possessing Consciousness)
२. पुद्गल (Matter and Energy) १. आचारांग सूत्र श्रुतस्कंध १ अ. १ उद्दे. १. सू. २।