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________________ केवलज्ञान-कल्याणक २१७ ___ वे भगवान अर्हत्, जिन, केवली, सर्वज्ञ, सर्वभावदर्शीदेव, मनुष्य और असुरकुमार तथा लोक के सभी पर्यायों को जानते हैं, जैसे कि जीवों की आगति, गति, स्थिति, च्यवन, उत्पाद तथा उनके द्वारा खाए पीए गए पदार्थों एवं उनके द्वारा सेवित प्रकट एवं गुप्त सभी क्रियाओं को तथा अनन्त रहस्यों को एवं मानसिक चिन्तन को प्रत्यक्ष रूप से जानते देखते हैं। वे सम्पूर्ण लोक में स्थित सर्व भावों को तथा समस्त पुद्गलों-परमाणुओं को जानते और देखते हैं। लोकालोक में अस्तित्व रूप सर्व वस्तुओं को भूत, भविष्य और वर्तमान की सर्व पर्यायों के साथ जानते हैं। पूजातिशय सर्व देव, असुर और मनुष्यों द्वारा की जाने वाली भगवंत की पूजा की पराकाष्ठा भगवंत का पूजातिशय है। रागद्वेषादि शत्रुओं का क्षय कर प्रभु ने अरिहंत पद प्राप्त किया, इसी कारण वे समस्त देवों, असुरों और मानवों के पूजनीय (अर्हत्) बने। अष्ट महाप्रातिहार्य और अन्य देवकृत अतिशय इस पूजातिशय में ही गिने जाते हैं। वागातिशय-वचनातिशय परमात्मा समस्त जीवों की रक्षा के लिए अपना अमृतमय प्रवचन करते हैं, इससे विश्व के सभी प्राणियों को अभयदान मिलने की प्रेरणा प्राप्त होती है। इस रूप में भगवान् का वचनातिशय होता है। परमात्मा के प्रवचन को सर्वप्राणी अपनी अपनी भाषा में समझ लेते हैं। यही कारण है कि अपने सर्वजीवस्पर्शी प्रवचन (धर्मोपदेश) द्वारा भगवान् जगत् के जीवों को जन्म-जरा-मृत्यु आदि से बचने का उपाय बताकर वस्तुतः उनकी आत्मरक्षा करते हैं। अतः वे सारे विश्व के वास्तविक पालक एवं रक्षक हैं। अपने बच्चों का पालन और रक्षण तो सिंह और बाघ भी करते हैं, भगवान के द्वारा सर्व जीवों का पालन रक्षण तो मोहरहित निःस्वार्थभाव से होता है। इसी अतिशय में परमात्मा की वाणी के ३५ गुण आते हैं। समवायांग सूत्र के अनुसार ३४ अतिशय इस प्रकार हैं१-केश, रोम और स्मश्रु का अवस्थित रहना। २-शरीर का रोगरहित एवं निर्लेप होना। ३-गो-दुग्ध की तरह रक्त-मांस का श्वेत होना। ४-श्वासोच्छ्वास का उत्पल कमल की तरह सुगन्धित होना। ५-आहार, निहार प्रच्छन्न याने चर्मचक्षु से अदृश्य होना। ६-आकाशगत चक्र होना। ७-आकाशगत श्वेत चामर होना। ८-आकाशगत छत्र होना। ९-आकाशस्थ स्फटिक सिंहासन।
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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