________________
ज्ञान-कल्याणक १९३ .......................................................
भाग देने पर जो लब्ध आवे उतनी सोपानों की लम्बाई जाननी चाहिए। भगवान् पार्श्वनाथ के समवसरण में सीढ़ियों की लम्बाई अड़तालीस से भाजित पाँच कोश और वीरनाथ के अड़तालीस से भाजित चार कोस प्रमाण थी। वे सीढ़ियाँ एक हाथ ऊँची और एक हाथ ही विस्तार वाली थीं। सोपानों की यह ऊँचाई आदि श्वेताम्बरों के अनुसार ही होने पर एक अद्भुतता दिगम्बर ग्रन्थों में पाई जाती है वह यह कि इनके अनुसार “पर्वत के ऊपर धूलीशाल तक अर्धकोश दूर होता है, अतः जोर से आवाज देने पर वहाँ तक सुनाई दे सकता है।"
परम्परागत मान्यता के अनुसार कुछ विभिन्नताएँ भी पायी जाती हैं जो इस प्रकार
सोपान-आरोहण
ये बीस हजार सोपान क्रमशः चढ़ने की आवश्यकता नहीं होती है। अथवा सोपान पर पैर रखते ही वहाँ के पादलेप के प्रभाव से क्षण मात्र में अंतिम सोपान तक पहुंचा जा सकता है, और जिनेन्द्र के दर्शन भी हो सकते हैं, यह वहाँ का अतिशय है। अन्यथा एक हाथ ऊँचे २० हजार सोपान कैसे पार किये जा सकते हैं ? परमात्मा के प्रभाव से इसकी सफलता मान लेने पर भी समय की मर्यादा तो किसी भी हालत में नहीं बैठ सकती।
यद्यपि श्वेताम्बर मान्यता इससे बहुत कुछ भिन्न है। श्वेताम्बर परम्परा में परमात्मा के प्रभाव से सोपानों का चढ़ जाना माना गया है।
बालग्लानजर्जरादीनां सोपानाधारोहतां श्रमो व्याधिश्च प्रभु प्रभावान्न भवेत् ......... अर्थात् प्रभु के प्रभाव से बाल, ग्लान और जरापीड़ित वृद्ध लोगों को भी सोपानों को चढ़ते समय किंचित् मात्र भी श्रम या व्याधि का अनुभव नहीं होता है। प्राकारों का आधिक्य
श्वेताम्बर ग्रन्थों में समवसरण के तीन प्राकार माने जाते हैं, दिगम्बर परम्परा में . ९ प्राकार माने जाते हैं। भरतेश वैभव में एक समवसरण के वर्णन में कहा है-यह 'समवसरण के ९ प्राकार हैं। उनमें एक तो नवरत्न से निर्मित, एक माणिक्यरल से निर्मित और पाँच सुवर्ण से निर्मित और दो स्फटिक रल से निर्मित हैं। इस प्रकार यह देवनगरी ९ परकोटों से वेष्ठित है। पहला परकोटा नवरत्नों से, दो सुवर्ण से, एक पद्मरागमणि से और तीन सुवर्ण से निर्मित हैं। तदनंतर दो स्फटिक से निर्मित है।
समवसरण के वर्णन में ४ साल व पाँच वेदिकाओं का वर्णन करते हैं। इन नव परकोटों से हो ४ साल और पाँच वेदिकाओं के विभाग होते हैं। चारों दिशाओं में चार द्वार हैं। और चारों ही द्वारों के बाहर अत्यन्त उन्नत चार मानस्तंभ विराजमान हैं। . ९ परकोटों में से ८ परकोटों के द्वार पर द्वारपाल हैं। नौवें परकोटे के द्वार पर द्वारपाल नहीं है।