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केवलज्ञान-कल्याणक १८७
रत्नमय तृतीय वप्र
द्वितीय प्राकार का प्रतर समाप्त होते ही तृतीय प्राकार के सोपानों का प्रारम्भ होता है। ये कुल ५000 हजार हैं। इन सोपानों का अतिक्रमण कर लेने पर भव्यात्मा रत्नमय तृतीय प्राकार को प्राप्त होता है। इस प्राकार के कंगूरे मणिरल के हैं। इस वप्र की भीतों की लम्बाई और चौड़ाई तथा चारों द्वारों की रचना आदि पूर्ववत् ही समझना। इस वप्र के पूर्व द्वार में सोम नामक वैमानिक देव सुवर्ण जैसी कांति वाला, हाथ में धनुष धारण किया हुआ द्वारपाल होता है। दक्षिण द्वार में गौर अंगवाला व्यंतर जाति का, हाथ में दंड धारण किया हुआ यम नामक देव द्वारपाल होता है। पश्चिम द्वार पर ज्योतिषी जाति का रक्तवर्ण वाला हाथ में पाश लिए वरुण नामक देव होता है और उत्तर 'द्वार पर भवनपतिनिकाय का श्याम कांति वाला हाथ में गदा धारण किया हुआ धनद नामक देव होता है। यद्यपि जहाँ अहिंसा की प्रतिष्ठा है वहाँ अस्त्र-शस्त्र लेकर खड़े रहना संगत प्रतीत नहीं होता है फिर भी ऐसा लगता है कि इन वर्णनों पर राजसी वैभव की छाया पड़ी है, चरित्रकारों का मानस वैदिक परंपराओं के वर्णनों से प्रभावित है-अतः वीतराग जीवन से विपरीत वर्णन करते चले गये हैं।
इस तीसरे प्राकार के मध्य में एक कोस छः सौ धनुष लंबा चौड़ा समभूतल पीठ है। यह तीसरा वप्र वैमानिक देव बनाते हैं।
_ यह तो बाह्य वर्णन हुआ इसके अतिरिक्त इसकी कई आंतरिक अद्भुत विशेषताएं . हैं जिनका वर्णन आगे किया जाएगा। . अब समवसरण का मान, नाप, प्राकारादि दर्शाते हैं। समवसरण-मान
रत्नमय प्राकार के मध्य का समभूतल पीठ एक कोश और ६00 धनुष प्रमाण है। इस प्राकार के सोपानों का प्रारम्भ सुवर्णमय (मध्य) प्राकार से होता है। इस मध्य प्राकार का मूल प्रतर ५० धनुष होता है-दोनों ओर मिलाने पर सम्पूर्ण प्रतर भाग १00 धनुष प्रमाण होता है। इस प्राकार में रहे हुए रजत प्राकार के सोपान ५000 हैं। ये कुल १२५० धनुष विस्तार में हैं। व्यास के दोनों छोर मिलाने पर कुल २५00 धनुष होते हैं। सोपानों का विस्तार और मूल प्रतर-विस्तार में मिला देने से इस द्वितीय प्राकार का विस्तार २६00 धनुष अर्थात् एक कोश ६०० धनुष होता है। इसी प्रकार सुवर्ण प्राकार के सोपान रजत प्राकार के भीतर होने से इस प्राकार का विस्तार भी एक कोश ६०० धनुष होता है। इस प्रकार तीनों प्राकारों का प्रतर विस्तार ३ कोश १८00 धनुष होता है। तीनों प्राकारों की दीवारें ३३ धनुष और ३२ अंगुल चौड़ी होती हैं। तीनों दीवारों की चौड़ाइयों का विस्तार मिलाने से ९९ धनुष और ९६ अंगुल होते हैं तथा व्यास मान से दोनों ओर से मिलकर १९८ धनुष और १९२ अंगुल होते