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________________ १७२ स्वरूप-दर्शन अवधूनन :- अपूर्वकरण द्वारा कर्मग्रन्थि भेद का उपादान जानना। धूनन :-भिन्न ग्रन्थिवालों का अनिवृत्तिकरण द्वारा सम्यक्त्व में रहना। नाशन :- कर्मप्रकृति का स्तिबुक संक्रमण द्वारा एक प्रकृति का द्वितीय प्रकृति में संक्रमण होना। विनाशन :- शैलेशी अवस्था में सम्पूर्ण कर्मों का अभाव। ध्यापन :- उपशम श्रेणि में कर्म का उदय में नहीं आना। क्षपण :- अप्रत्याख्यानादि क्रम द्वारा क्षपक श्रेणि में मोहादि का अभाव होना। छेदन :- उत्तरोत्तर शुभ अध्यवसाय में आरूढ़ होने से स्थिति को कम करना। भेदन :- बादर संपराय अवस्था में संज्वलन लोभ का खंड-खंड करना। स्फेटन :- चतुःस्थानादिक रसवाली अशुभ प्रकृति का त्रिरसादि बनाना। दहन :- केवलीसमुद्घात रूप ध्यानाग्नि द्वारा वेदनीय कर्म को भस्मसात् करना : तथा अन्य कमों को दग्ध रज्जुवत् बनाना। धावन :- शुभ अध्यवसाय से मिथ्या पुद्गलों को सम्यक्त्वभावी बनाना आदि होता ___ है। अतः तप अत्यन्त आवश्यक है। . तप सर्व तीर्थंकर करते नहीं, उनसे तप हो जाता है। आत्मभाव की लीनता में देहभावों को भूल जाना तप है। अतः मैं बेला करूँ, तेला करूँ ऐसे निश्चय से तप करते नहीं, तप उनका हो जाता है। इसी कारण सभी के तप का प्रमाण समान नहीं होता, कर्मों के अनुसार तप होता है। ___वर्तमान चौबीसी के सर्व तीर्थंकरों का तप उपसर्ग रहित बताया है। (पार्श्वनाथ स्वामी का थोड़ा होने से नहीं जैसा गिना है) भगवान ऋषभदेव भी एक वर्ष से अधिक कुछ दिन आहार पानी रहित रहे थे। अन्य तीर्थंकर भी आंशिक तप करते हैं। परंतु वर्धमान स्वामी का तप उपसर्गयुक्त था। श्रमण भगवान् महावीर दीर्घ तपस्वी कहलाते हैं। उनका साधनाकाल साढ़े बारह वर्ष और एक पक्ष का है। इतने काल में उन्होंने सिर्फ तीन सौ पचास दिन भोजन किया। निरंतर भोजन कभी नहीं किया। उपवास काल में जल कभी नहीं पिया। उनकी कोई भी तपस्या दो उपवास से कम नहीं थी। अरिहंत की आहार चर्या अरिहंत-परमात्मा शरीर के लिए जितना अनिवार्य एवं आवश्यक हो उतना ही आहार करते हैं। वे हमेशा ऊनोदरिका ही करते हैं। भगवान् की समत्व-साधना इतनी सुदृढ़ रहती है कि उन्हें जैसा भी भोजन मिलता है वे उसे समभाव से खा लेते हैं। कभी ठंडा भोजन मिलता है तो कभी गर्म। कभी
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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