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________________ प्रव्रज्या-कल्याणक १६५ ........................ स्वविमानों पर आरूढ़ होकर, बादर पुद्गलों को छोड़कर सूक्ष्म पुद्गलों को ग्रहण करके उत्कृष्ट, शीघ्र, चपल, त्वरित और दिव्य प्रधान देवगति से नीचे उतरते हुए तिर्यक् लोक में स्थित असंख्यात द्वीप समुद्रों को उल्लघंन करते हुए आते हैं। वहाँ आकर वे मनोहर रूप वाले देवच्छंद का निर्माण करते हैं और उस पर एक विस्तृत पादपीठयुक्त सिंहासन का निर्माण करते हैं तथा उस पर तीर्थंकर परमात्मा को बैठाकर अभिषेक की तैयारी करते हैं। अभिषेक के समय आभियोगिक देवों द्वारा निर्मित १00८ सुवर्णादि कलशों का उपयोग करते हैं। ___ अभिषेक के पश्चात् वैक्रिय लब्धि से निर्मित पुष्पमालाओं से अलंकृत शतः स्तम्भ युक्त शिबिका में प्रशस्त अध्यवसाय एवं शुभ लेश्याओं से युक्त परमात्मा को बैठाते हैं। नदी जिस प्रकार दूसरी नदी में मिल जाती है उसी प्रकार तीर्थंकर भगवान के पिता द्वारा निर्मित शिबिका. में यह देव निर्मित शिबिका अनुप्रविष्ट हो जाती है। तत्पश्चात् अरिहंत परमात्मा प्रदक्षिणा कर उस शिबिका में स्थित सिंहासन पर पूर्वाभिमुख होकर विराजते हैं। इस शिबिका को सब से पहले मनुष्य हर्ष एवं उल्लास के साथ उठाते हैं। तत्पश्चात् आचारांग सूत्र के अनुसार इस शिबिका को पूर्व दिशा से सुर-वैमानिक देव उठाते हैं, दक्षिण से असुरकुमार, पश्चिम से गरुड़कुमार और उत्तर दिशा से नागकुमार उठाते हैं। ज्ञातासूत्र के अनुसार शक्र देवेन्द्र देवराज शिबिका के दक्षिण दिग्भागवर्ती ऊपर के दण्ड को पकड़ते हैं, उत्तर दिग्भागस्थ ऊपर के दण्डे को ईशानेन्द्र पकड़ते हैं, दक्षिणदिग्भागवर्ती नीचे के दण्डे को चमरेन्द्र पकड़ते हैं एवं उत्तर दिग्भागस्थ नीचे के 'दण्डे को बलीन्द्र उठाते हैं तथा अवशिष्ट भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक इन्द्र अपनी-अपनी योग्यता के अनुसार शिबिका का परिवहन करते हैं। समवायांग सूत्र के अनुसार शिबिका को आगे देव वहन करते हैं, दाहिनी ओर से नागकुमार वहन करते हैं, असुरेन्द्रादिक पीछे से वहन करते हैं और उत्तर की ओर से गरुड़ गरुड़ध्वज . अर्थात् सुपर्ण कुमार वहन करते हैं। प्रभु के शिबिका में बिराज जाने पर निष्क्रमणविधि बहुत भव्य एवं अद्भुत होती है। सर्वप्रथम उनकी शिबिका के आगे क्रमानुसार अष्टमंगल द्रव्य उपस्थित होते हैं(१) स्वस्तिक, (२) श्रीवत्स, (३) नन्दिकावर्त, (४) वर्धमान, (५) भद्रासन, (६) कलश, (७) मत्स्य और (८) दर्पण। अष्ट मंगल के पीछे अनारोह वाले (जिस पर कोई न बैठा हो ऐसे) १०८ हाथी, १०८ अश्व और १०८ प्रधान पुरुष, तत्पश्चात् चार प्रकार की सेना होती है, उसके बाद हजार योजन ऊँचा एवं हजार ध्वजाओं से युक्त महेन्द्र ध्वज (इन्द्र ध्वज) आदि अनेक भव्य एवं अद्भुत वस्तुओं से युक्त यह निष्क्रमण विधि होती है। शिबिका के
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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