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________________ जन्म-कल्याणक १५७ . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . ___अत्यन्त ठोस या सघन, स्नायुओं से बद्ध, श्रेष्ठ लक्षणों से युक्त पर्वत के शिखर के समान आकार वाला और पत्थर के वृत्तपिण्ड के समान (भगवान का) मस्तक होता है। बाल कोमल, सुलझे हुए, स्वच्छ, चमकीले, पतले-सूक्ष्म, लक्षणयुक्त, सुगंधित, सुन्दर, काले और लटों के समूह से एकत्रित धुंघराले प्रदक्षिणावर्त छल्लेदार होते हैं। केश के समीप में केश के उत्पत्ति के स्थान की त्वचा दाडिम के फूल के समान प्रभायुक्त, लाल सोने के समान (वर्ण) निर्मल और उत्तम तेल से सिञ्चित होती है अर्थात् चिकनाई से युक्त चमकीली होती है। . उनका उत्तमांग घन, भरा हुआ और छत्राकार होता है। ललाट आधे चाँद के समान, घाव आदि के चिन्ह से रहित, सम, मनोज्ञ व शुद्ध होता है। मुख सौम्य होता है। मनोहर या संलग्न ठीक ढंग से मुख के साथ जुड़े हुए या आलीन प्रमाण से युक्त कान होते हैं, अतः वे सुशोभित होते हैं। दोनों गाल मांसल और भरे हुए होते हैं। भौंहें कुछ झुके हुए धनुष के समान (टेढ़ी) सुन्दर, पतली, काली और कान्ति से युक्त होती हैं। नेत्र खिले हुए सफेद कमल के समान होते हैं। आँखें बरौनी-भाँपन से युक्त धवल होती हैं। नाक लम्बी, उन्नत और आयत होती है। संस्कारित शिलाप्रवाल-मूंगे और बिम्बफल के समान अधरोष्ठ होते हैं। दाँतों की श्रेणी श्वेत, सुश्लिष्ट और सु-संबद्ध होती है। दाँत अखण्ड, मजबूत, अविरल-परस्पर सटे हुए, दो दाँतों के बीच का अन्तर अधिक नहीं हो ऐसे, सुस्निग्ध-चिकने, चमकीले और सुन्दराकार होते हैं। तालु और जीभ के तले, तपे हुए सोने के समान लाल होते हैं। भगवान् की दाढ़ी-मूंछे कभी नहीं . बढ़ती हैं-सदा एक-सी रहती हैं और सुन्दर ढंग से उँटी हुई-सी रम्य होती हैं। चिबुक ठुड्डी मांसल, और सुन्दराकार, प्रशस्त और विस्तीर्ण होती है। : ग्रीवा श्रेष्ठ, सुन्दर और चार अंगुल की उत्तम प्रमाण से युक्त और दक्षिणावर्त रेखाओं से अलंकृत होती है। स्कंध-कंधे समान प्रमाण से युक्त सभी विशेषताओं से सम्पन्न और विशाल होते हैं। उनके बाहु गाड़ी के जुड़े (जूए) के समान (गोल और लम्बे) मोटे, देखने में सुखकर और दुर्बलता से रहित पुष्ट पांचों कलाइयों से युक्त होते ' हैं। बाहु हृष्ट-पुष्ट स्थिर और स्नायुओं से ठीक ढंग से और बंधी हुई-सन्धियों-हड्डियों के जोड़ से युक्त सूक्ष्म रोम से अत्यंत सुशोभित होते हैं। प्रभु के हाथ के तले लाल, उन्नत, कोमल, भरे हुए, सुन्दर और शुभ लक्षणों से युक्त होते हैं। अंगुलियों के बीच में (उन्हें मिलाने पर) छिद्र दिखाई नहीं देते हैं। अंगुलियाँ पुष्ट, कोमल और श्रेष्ठ होती हैं। अंगुलियों के नख ताम्बे के समान कुछ-कुछ लाल, पवित्र, दीप्त और स्निग्ध, हाथ में चन्द्राकार, सूर्याकार, शंखाकार, चक्राकार और दक्षिणावर्त स्वस्तिकाकार रेखाएँ होती . भगवान का वक्ष-छाती, सीना सुवर्ण शिलातल के समान सुभग, उज्ज्चल, प्रशस्त, समतल, मांसल, विशाल और चौड़ा होता है। उस पर 'श्रीवत्स' स्वस्तिक, कुंभ, सिंह,
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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