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१५६ स्वरूप-दर्शन उनकी माता के बारे में अशुभ चिंतन करेगा उसके मस्तक के आर्यकमंजरी की तरह सात टुकड़े हो जायेंगे।"
अरिहंत भगवान का जन्म महोत्सव करके भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी एवं वैमानिक देव नंदीश्वर द्वीप में जाकर अष्टान्हिका महोत्सव करते हैं। पाँच अप्सराओं द्वारा परिपालना
जन्म के बाद पाँच धायमाताओं द्वारा तीर्थंकर का लालन-पालन होता है। उनके पाँचों के काम इस प्रकार हैं-(१) दूध पिलाना, (२) स्नान कराना, (३) वस्त्रालंकार 'हनाना; (४) क्रीड़ा कराना और (५) गोद में खेलाना। अंगुष्ठ में देवों द्वारा अमृत स्थापना भगवान के आहार सम्बन्धी मन्तव्य में भद्रबाहु स्वामीने कहा है कि
देसूणगं च वरिसं सक्कागमणं च वंसठवणा य ।
आहारमंगुलीए ठवंति देवा मणुण्णं तु In देवों ने भगवन्त की अंगुली में मनोज्ञ आहार स्थापित किया क्योंकि-सर्व तीर्थंकर माता का स्तनपान नहीं करते हैं। जिस समय आहार की इच्छा होती है उस समय स्वयं की अंगुली का पान करते हैं। चउपन्न महापुरुष चरियं के अनुसार अंगुष्ठ में देवों द्वारा आहार की नहीं परन्तु अमृत की प्रतिष्ठा जाती है। __इसका स्पष्टीकरण करते हुए उन्होंने कहा है कि जिस प्रकार सूर्य अमृता नाड़ी (इडा नाड़ी) के समूह में अमृत को स्थापित करते हैं। गुरु जिस प्रकार भव्य प्राणी के हृदय में सद्बोध को स्थापित करते हैं। वैसे ही सौधर्मेन्द्र विविध आहार के रस-अमृत को अरिहंत अंगुष्ठ में स्थापित करते हैं। नियुक्तिकार शीलांकाचार्य, गुणचंद्राचार्य एवं मलयगिरि के अनुसार यह प्रवृत्ति सौधर्मेन्द्र स्वयं करते हैं।
अरिहंत की देह का वर्णन __अरिहंतों का संस्थान समचतुरन और संघयण वज्रऋषभनाराच होता है। शरीर-स्थित वायु का वेग अनुकूल होता है। पद्म-कमल या 'पद्म' नामक गन्ध द्रव्यं
और उत्पल-नील कमल या 'उत्पलकुष्ठ' नामक गंध द्रव्य की सुगंध के समान निःश्वास से सुरभित (प्रभु का) मुख होता है। उनकी त्वचा कोमल और सुन्दर होती है। प्रभु की देह का मांस रोग रहित, उत्तम, शुभ अतिश्वेत और अनुपम होता है। अतः जल्लकठिन मैल, मल्ल-अल्प प्रयत्न से छूटने वाला मैल, कलंक-दाग, पसीने और रज के दोष से रहित (भगवान का) शरीर होता है-उस पर मैल जम ही नहीं सकता है। अतः अंग-प्रत्यंग उज्ज्वल कान्ति से प्रकाशमान होते हैं। १. आवश्यक नियुक्ति गा. १८९