________________
१५४ स्वरूप-दर्शन __ यह सुनकर भरत के द्वारा मूलरूप बताने के आग्रह को नहीं टालते हुए इन्द्र ने उचित अलंकारों से सुशोभित अपनी एक उंगली भरत को बताई। परन्तु उस उंगली का रूप अत्यन्त तेजस्वी होने से भरत नहीं देख सके।
तत्पश्चात् सौधर्मेन्द्र दर्शनीय, सुन्दर, मनोहर एक समान सदृश रूप वाले वृषभ के चार रूप चार दिशा में विकुर्वित करते हैं। ___ हेमचन्द्राचार्य ने वृषभ के स्वरूप का स्फुटार्थ करते हुए कहा है कि ये वृषभ स्फटिक रल के बने हुए हैं। उनके उत्तरवर्ती अन्य कुछ आचार्यों ने इन विचारों का ही. शायद अनुकरण करते हुए वृषभों को सूर्यकांत मणि के भी कहे हैं। परन्तु यह उपयुक्त.. नहीं लगता है क्योंकि स्फटिक रत्न या सूर्यकांत मणि के बने हुए वृषभ में सौन्दर्य अधिक हो सकता है परन्तु साथ ही वे नकली भी लगते हैं जब कि वास्तविक रूप में । मनोहरता होती है। यद्यपि होते तो वे भी विकुर्वित ही परन्तु दैवीय प्रभाव से . तथास्वरूप लगते हैं। . ___यहाँ पर मूल आगमकारों ने इसकी स्पष्टता हेतु “पासाइए" शब्द का प्रयोग किया है, जिसका अर्थ होता है प्रसन्नताजनक। इससे वृषभ की वास्तविकता अधिक स्पष्ट . होती है। इन वृषभ के आठ शृंगों में से आठ जल धाराएँ प्रथम ऊपर की ओर जाती हैं और एकत्र होकर भगवान के मस्तक पर गिरती हैं। ये जल धाराएँ अत्यन्त निर्मल एवं उज्ज्वल होती हैं, इसकी उज्ज्वलता का वर्णन करते हुए मानतुंगाचार्य श्रेयांसनाथ चरित्र में कहते हैं कि जलधारा चन्द्र जैसी उज्ज्वल होती है। वृषभाभिषेक के पश्चात् इन्द्रजालिक जिस प्रकार इन्द्रजाल का उपसंहार करते हैं वैसे इन्द्र अपने उस विकुर्वित रूप का उपसंहार कर ८४ हजार सामानिक देवों सहित क्षीरोदक से भरे हुए हजारों कलशों द्वारा अभिषेक करते हैं।
उपरोक्त आगम प्रमाणों के अतिरिक्त अन्यत्र कुछ भिन्नता पाई जाती है जैसे
(१) शीलांकाचार्य के अनुसार ३२ इन्द्र इसी प्रकार वृषभों के रूप से. जलधारा द्वारा पहले अभिषेक करते हैं और बाद में १००८ सुवर्ण कलेशों से सर्वौषधियुक्त क्षीरोदधि के जल द्वारा विधिपूर्वक अभिषेक करते हैं।
(२) महावीर चरियं में प्रथम वृषभों द्वारा क्षीरोदक से अभिषेक और बाद में कलशों द्वारा क्षीरोदक के अभिषेक होने का उल्लेख है।
(३) सुपार्श्वनाथ चरित्रकार ने प्रथम जलधारा से एवं बाद में क्षीरोदक से अभिषेक होता है, ऐसा कहा है। ____ (४) वासुपूज्यचरित्र में वृषभ रूप से क्षीर की धारा से अभिषेक करने का कहा
(५) अमरचन्द्रसूरि के अनुसार वृषभ रूप से दूध की धारा द्वारा अभिषेक क्रिया जाता है।