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जन्म-कल्याणक १५१ .............................
(सूर्य-चन्द्र) ज्योतिषी के २, और शक्र, ईशान, सनत्कुमार, यावत् प्राणत, अच्युत (आदि वैमानिक के १०) इस प्रकार कुल ३२ इन्द्र होते हैं। यदि मूलतः इन्द्रों की संख्या ३२ हो तो ६४ इन्द्रों का मेरु पर्वत पर आने का उल्लेख कैसे उचित होगा ? अतः अभयदेव सूरि ३२ इन्द्रों वाले सिद्धांत की टीका में ६४ इन्द्रों की संख्या दर्शाते हुए कहते हैं-यहाँ १६ व्यंतरेन्द्र एवं १६ अनपन्नी-पनपन्नी आदि वाणव्यंतर इन्द्र अल्पअवधि वाले होने से उनकी विवक्षा नहीं की है।
टीकाकार अभयदेव सूरि के उपर्युक्त ६४ इन्द्रों के समाधान से जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति का प्रस्तुत कथन उपयुक्त है। कहीं-कहीं ३२ इन्द्रों के एवं कहीं ६४ इन्द्रों के आगमन का उल्लेख है। हरिभद्रसूरि ने “आवश्यक नियुक्ति की वृत्ति" में, शीलांकाचार्य ने "चउपन्त्रमहापुरिसचरियं" में, आचार्य गुणचन्द्र ने “महावीर चरियं" में ३२ इन्द्रों के आगमन का कथन है। इनके उत्तर काल के आचार्यों ने प्रायः सर्वत्र ६४ इन्द्रों के आगमन का ही उल्लेख किया हैं। यद्यपि हेमचन्द्राचार्य ने इन संख्या के अतिरिक्त ज्योतिष के असंख्यात इन्द्रों के आगमन की विशेषता बताई है।
अच्युतेन्द्र की आज्ञा से उनके आभियोगिक देव ईशानकोण में जाकर कलशादि विकुर्वित करते हैं। ये कलश निम्नोक्त आठ प्रकार की वस्तुओं के होते हैं
१. स्वर्णमय २. रजतमय ३. रत्नमय ४. स्वर्ण-रजतमय ५. स्वर्ण-रत्नमय ६. रजत-रत्नमय ७. स्वर्ण-रजत-रत्नमय ८. मृत्तिकामय ९. चन्दनमय।
चन्दनमय कलश जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में अधिक गिना है। अन्य ग्रन्थकारों ने पूर्वोक्त आठ ही प्रकार के कलश गिनाये हैं। ये सर्व प्रकार के कलश १००८ प्रमाण होते हैं।
इन कलशों की निश्चित संख्या का प्रमाण दर्शाते हुए सेनप्रश्न में कहा है
कुल कलशों की संख्या एक करोड़ साठ लाख होती है, जो इस प्रकार है-अच्युत इन्द्र तक बासठ इन्द्रों के ६२ अभिषेक, मनुष्य लोक के एक सौ बत्तीस, चन्द्र-सूर्य के .. १३२ अभिषेक, इस प्रकार १९४ इन्द्रों के १९४ अभिषेक, तथा असुर कुमार की
दक्षिण एवं उत्तर दिशा को मिलाकर १०, इन्द्राणी के १0 अभिषेक, नागकुमारादि नवनिकाय के दक्षिण एवं उत्तर दिशा की जाति की अपेक्षा से १२, इन्द्राणियों के १२. अभिषेक, व्यंतर की चार इन्द्राणियों के चार अभिषेक, ज्योतिषी की चार इन्द्राणियों के चार अभिषेक, प्रथम दो देवलोक की १६ इन्द्राणियों के १६ अभिषेक, सामानिक देवों का एक अभिषेक, त्रायस्त्रिंशकदेवों का एक अभिषेक, लोकपालों के चार अभिषेक, पर्षदा के देवों का एक अभिषेक, अनीकाधिपति का एक अभिषेक एवं प्रकीर्णक देवों का एक अभिषेक इस प्रकार कुल अभिषेक २५0 होते हैं।
सुवर्णादि आठ जाति के आठ-आठ हजार कलश होने से एक अभिषेक में ६४ हजार कलश होते हैं। ६४ हजार को २५० से गुणने पर एक करोड़ साठ लाख होते हैं।