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________________ १५० स्वरूप-दर्शन इससे विपरीत हेमचन्द्राचार्य ने तो इन्द्र के हाथों से ही प्रभु को ग्रहण करने का स्पष्ट उल्लेख करते हुए यहां तक कहा है कि प्रभु को ग्रहण करने के पूर्व इन्द्र "भगवान् मुझे आज्ञा प्रदान करो"१ इस प्रकार विनयपूर्वक कहकर बाद में अपने चंदन विलेपित हाथों में प्रभु को ग्रहण करते हैं। जन्माभिषेक महोत्सव मैं अपनी वैक्रिय शक्ति को सफल करू-ऐसा सोचकर शक्रेन्द्र स्वयं के विकुर्वित(परिकल्पित) पांच रूप से प्रभु को ग्रहण करते हैं। जिसमें एक रूप से प्रभु को अपने करतल में ग्रहण करते हैं, एक रूप से पीछे रहकर छत्र धारण करते हैं, दो रूप से . दोनों ओर चंवर बींजते हैं और एक रूप से हाथ में वज्र धारण कर तीर्थंकर भगवान् के आगे चलते हैं। शक्रेन्द्र स्वयं के पांच रूप इसलिए विकुर्वित करते हैं कि परमात्मा पांच इन्द्रियों के विजेता, पांच विषयों के हर्ता, पांच महाव्रतों के पालन कर्ता, पांच समिति के.धारक, पंचाचार में प्रवीण, पंचम (कैवल्य) ज्ञान को प्राप्त करने वाले, पंचम (मोक्ष) गति को प्राप्त करने वाले हैं अतः पंचपरमेष्ठी में प्रमुख ऐसे परमात्मा की मैं स्वयं पांच रूपों द्वारा सेवा करूँ। या यह सोचकर कि परमात्मा की सेवा का लाभ मैं स्वयं ही लूं। अपने पांच रूपों द्वारा इन्द्र प्रभु को ग्रहण कर आकाशमार्ग से मेरु पर्वत पर पहुंचते हैं। शीलांकाचार्य के अनुसार वे अर्धपलकार में ही मेरु पर्वत पर पहुंचते हैं। देवभद्राचार्य (पार्श्वनाथ चरित्र) के अनुसार शक्रेन्द्र निमेष मात्र में मेरु पर्वत पर पहुँच जाते हैं। हेमचन्द्राचार्य के अनुसार वे अन्तर्मुहूर्त में मेरुपर्वत पर पहुंचते हैं। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के अन्तर्गत समय की कोई निश्चित अवधारणा प्रस्तुत नहीं है तदपि, उपर्युक्त उल्लेखों से इतना तो स्पष्ट है कि परमात्मा को लेकर शक्रेन्द्र अत्यन्त द्रुत एवं दिव्य गति से ही मेरु पर्वत पर पहुंचते हैं। सौधर्मेन्द्र जन्म-स्थान से एवं अन्य इन्द्र स्वस्थान से ही मेरु पर्वत पर जाते हैं। प्रभु को लेकर सौधर्मेन्द्र देववृन्द सहित मेरु पर्वत के शिखर पर जयध्वनि के साथ पहुंचकर पांडुकबला नाम की शिला पर जो अरिहंत भगवान के अभिषेक के योग्य विचित्र-रलों के प्रभापटल रूप जल से प्रक्षालित है, ऐसे सिंहासन पर भगवान को अपने उत्संग में धारण कर पूर्वाभिमुख होकर बैठते हैं। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में अरिहंत के जन्माभिषेक महोत्सव हेतु १० वैमानिक के, २० भवनपति के, ३२ याणव्यंतर के एवं २ ज्योतिष के इस प्रकार ६४ इन्द्र मेरु पर्वत पर आते हैं, परन्तु सुमवायांग सूत्र के अन्तर्गत इन्द्रों की ३२ संख्या ही गिनाई है वह इस प्रकार-चमर, बलि, धरण, भूतानंद, घोष, महाघोष आदि भवनपति के २० १. त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र-पर्व-१, सर्ग २, श्लो. ४१८
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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