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________________ . . ... . . . . . . . . . जन्म-कल्याणक १४९ ............................................... दिशा की पंक्तियों से नीचे उतरते हैं, तत्पश्चात् शक्र देवेन्द्र चौरासी हजार सामानिक देव सहित उस दिव्य-यान-विमान के उत्तर दिशा की पंक्तियों से नीचे उतरते हैं और अन्य देव देवियाँ दक्षिण पंक्ति से नीचे उतरते हैं। शक्र देवेन्द्र अपने चौरासी हजार सामानिक देव सहित दुंदभि बजाते हुए भगवान तीर्थंकर के जन्म-भवन में प्रवेश करते हैं। __यथास्थान पहुंचकर सौधर्मेन्द्र तीर्थंकर और उनकी माता को प्रणाम कर प्रथम माता की स्तुति करते हुए उन्हें ऐसा सूचित करते हैं-“ओ रत्नकुक्षि धारिणी ! तू धन्य है, पुण्यशालिनी है, कृतार्थ है। मैं शक्र नामक देवेन्द्र, भगवान तीर्थंकर का जन्म महोत्सव करूँगा अतः भयभीत न होना।" ऐसा कहकर माता को अवस्वापिनी निद्रा देकर जिनेश्वर सदृश प्रतिरूप विकुर्वित कर माता के पास रखते हैं और जिनेश्वर को ग्रहण करते हैं। ___ पुत्र विरह के दुःख से माता दुःखी न हो अतः उन्हें द्रव्य निद्रा से निद्रित की जाती हैं। जन्म महोत्सव में शामिल देवों में से किसी दुष्ट देव द्वारा कौतूहल वश निद्रा का अपहरण किया जाय अथवा कोई परिजन आवे और नवजात शिशु को न देखकर विषाद करे अतः इन्द्र प्रभु का प्रतिरूप तैयार कर माता के पास रख देते हैं। ___ शीलांकाचार्य द्वारा उल्लेखित उद्धरणों में आगमोक्त विवरण से कुछ भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। जो इस प्रकार है १. चउपन्न पुरिसचरियं के अतिरिक्त अन्य ग्रन्थों में सौधर्मेन्द्र स्वयं जिनेश्वर को .. उठाते हैं जब कि चउपन्न पुरिसचरियं में माता के पास से जिनेश्वर को उठाने का कार्य इन्द्र स्वयं कहीं भी नहीं करते हैं। यह कार्य हरिणगमेषी देवों से ही करवाते हैं। २. शीलांकाचार्य के अनुसार अवस्थापिनी निद्रा से इन्द्र स्वयं निद्रित करते हैं तो : कभी वे हरिणैगमेषी को इस कार्य के लिए आज्ञा भी देते हैं-यहाँ तक तो ठीक है परंतु पार्श्वनाथ चरित्र एवं महावीर चरित्र में एक नई बात उल्लेखित की है कि इस निद्रा से न केवल माता को ही निद्रित किया जाता है परन्तु समग्र राजपरिवार एवं नगरजनों '. को भी निद्रित किया जाता है।४ ___ उपरोक्त विभिन्न दृष्टिकोण में लेखक के अभिप्राय का आधार न जाने क्या हो ? ऐसी कोई प्रचलित परम्परा हो अथवा कोई अन्य आधार हो, यह नहीं कह सकते हैं। परन्तु इतना तो स्पष्ट है कि इन्द्र के स्वयं तीर्थंकर को ग्रहण न करने का कारण भी इस ग्रन्थ में उपलब्ध नहीं होता है। १. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-पंचम वक्षस्कार। २. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-सटीक-पृ. ४०४। ३. चउपन्न महापुरिस चरिय-पृ. ३५ ४. चउपन्न महापुरिस चरियं-पृ. २५९
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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