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१४६ स्वरूप-दर्शन
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४. दक्षिण रुचिकादि निवासिनी दिशा
उनकी प्रवृत्ति कुमारियां १. समाहारा स्वच्छ जल से आपूरित मणि सुवर्ण के अष्ट कलश २. सुप्रज्ञा लेकर जिनेश्वर की माता के अत्यन्त निकट नहीं, अत्यन्त ३. सुप्रबुद्धा दूर नहीं इस प्रकार दक्षिण दिशा की ओर खड़ी रहती हैं। ४. यशोधरा ५. लक्ष्मीवती ६. शेषवती ७. चित्रगुप्ता
८. वसुधरा ५. पश्चिम रुचिकाद्रि निवासिनी दिशा
उनकी प्रवृत्ति कुमारियां १. इलादेवी | सुवर्ण की दंडीयाले तालेवृन्द अपने कर कमल में ग्रहण २. सुरादेवी
कर माता के पास पश्चिम दिशा की ओर खड़ी रहती हैं। ३. पृथ्वीदेवी ४. पद्मावती ५. एकनासा ६. नवमिका
(अनवमिका) ७. भद्रा ८. सीता (अशोका)
६. उत्तर रुचिकादि
निवासिनी दिशा
उनकी प्रवृत्ति
कुमारियां
१. अलम्बुसा
(आलम्बुषा) २. मिश्रकेशा (मिश्रकेशी)
| मणि के समूह से सुशोभित, महत् दंड से विस्तृत, श्वेत
चैवर लेकर जिनेश्वर की माता के उत्तर दिशा की ओर खड़ी रहती है। |