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१४२ स्वरूप-दर्शन
तुला राशि का शनि बीस अंश। इस प्रकार राशियों के साथ ग्रहों का सम्बन्ध उच्च कहलाता है। ___छत्रादि योग इस प्रकार कहलाते हैं-द्वितीय, द्वादश, प्रथम एवं सप्तम भवन में उच्चग्रह आये हों तब छत्रयोग होता है। तत्समय जन्म लेने वाला पुत्र राजा होता है। ___धन द्वितीय स्थान में, व्यय बारहवें स्थान में, रिपु छठे स्थान में, मृत्यु आठवें स्थान में हो तब सिंहासन नाम का योग होता है। यह योग देवों को भी दुर्लभ होता है।
तृतीय, पंचम, नवम एवं एकादश स्थान में ग्रह आते हैं तब बल नाम का योग होता है। वह सर्व प्रकार का सुख करने वाला है। चन्द्र से सप्तम स्थान में बृहस्पति हो .. अथवा चन्द्र संयुक्त बृहस्पति हो तब जीवयोग होता है। यह योग चिरायुकर्ता और सुखदाता है।
सर्व केन्द्र स्थान में जब सौम्य ग्रह आये हों तब चतुः सागर योग होता है।' ऐसे उत्तम योगों में जिनेश्वर भगवान् का जन्म होता है।
षट् पुरुष चरित्र में कहा है-“तेषां जन्मक्षणे तु भवन्ति शुभस्थानस्याः सर्वे शुभा . ग्रहा:२" जन्म क्षण में सर्व शुभग्रह शुभ स्थान वाले हो जाते हैं। जन्म-प्रभाव से उद्योत एवं आनंद __ जिस समय अरिहंत भगवान का जन्म होता है उस समय उनके जन्म के प्रभाव से तीनों लोक में अंधकार का नाश करने वाला उद्योत क्षणभर में ही सर्व लोक में फैल जाता है।
स्थानांगसूत्र के अन्तर्गत उद्योत होने के पाठ में उद्योत के कारणों का उल्लेख करते हुए कहा है।
चार कारणों से लोक में उद्योत-प्रकाश होता है(१) जिनेन्द्र देव के जन्म पर, (२) जिनेन्द्र देव के प्रव्रज्या ग्रहण के अवसर पर, (३) जिनेन्द्र देव के केवलज्ञान महोत्सव में और (४) जिनेन्द्र देव के निर्वाण महोत्सव में।
शीलांकाचार्य के अनुसार यह उद्योत क्षणभर ही होता है। परन्तु षट्पुरुषचरित्र में इसकी अवधि अन्तर्मुहूर्त की बताते हुए कहा है “स्यादन्तर्मुहूर्त नारकादीनामपि
सौख्यम्।"४
१. काललोक प्रकाश-सर्ग-३० श्लो. ७०-७५ २. पत्र-३५ ३. पत्र-३४ ४. पत्र-३५