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________________ जन्म-कल्याणक जन्म जन्म और मृत्यु तो अनेक जीवों के अनादिकाल से होते हैं। किन्तु तीर्थंकर के अतिरिक्त अन्य किसी के जन्म को जन्म-कल्याणक नहीं कहा जाता है। अनेकों भव्यात्माओं के भव्यत्व की सफलता जिनके जन्म में निहित है, उन वीतराग अरिहंत प्रभु के जन्म को जन्म-कल्याणक कहा जाता है-जिनका जन्म ही कल्याण करने वाला है। अन्य जीवों की अपेक्षा इनके जन्म का सर्वोपरि महत्व तीर्थंकर नाम-कर्म के प्रदेशोदय और विपाकोदय के सफल हेतु रूप है। इनका जन्म ही अनेकों के जन्म-मृत्यु को मिटाने का कारणरूप है। ____ असंख्य आत्माओं के उद्धार की सक्रिय वीर्योल्लास शक्ति को साथ लेकर आने वाले अपार्थिव आत्मतत्व के अपूर्व ज्ञाता अरिहंत का इस पृथ्वी पर पार्थिव स्वरूप में यह अन्तिम जन्म है। हजारों भव्यात्माओं को जन्म-मृत्यु के बन्धनों से मुक्ति दिलाने वाले समस्त परमाणु पुंज के साकार सच्चिदानन्द परमात्मा का यह अन्तिम जन्म है। ___ अरिहंत के पंचकल्याणक में जन्म-कल्याणक का द्वितीय स्थान है। प्रभु के जन्म कल्याणक की अद्वितीय विशेषताएँ हैं। जन्म के अवसर पर देव-देवियों का आगमन एवं महोत्सव मनाने मात्र से ही इनके जन्म की विशेषता है, ऐसा नहीं है। किन्तु प्रबल पुण्य के प्रकर्ष से युक्त जिन-जन्म की अन्य भी कई विशेषताएँ हैं। जिस राजकुल में उनका जन्म होता है वहीं पर केवल सुखावह नहीं अपितु सम्पूर्ण लोक के सुखदाता बनकर ही जन्म से ही वे जन्मकृत अतिशयों से युक्त होते हैं। प्राकृतिक वातावरण उनको अनायास सार्नुकूल होता है। अतः अर्हत् जन्म की स्थिति एवं प्रभाव का उनके जन्म-कल्याणक में अधिक महत्व है। उत्तम योगों में जन्म जब सर्व ग्रह उच्च स्थिति में आये हुए हों, बलवान् हों, शुभ निमित्त प्राप्त हुए हों, छत्रादि शुभ जन्म योग आये हों, शुभ लग्न का नवांश हो तब अर्धरात्रि में अरिहंत भगवान् को माता जन्म देती है।' ये उच्चग्रह इस प्रकार होते हैं-मेष राशि का सूर्य दश अंश, वृषभ राशि का चन्द्र तीन अंश, मकर राशि का मंगल अट्ठाईस अंश, मीन राशि का शुक्र सत्ताईस अंश, १. ज्ञातासूत्र-अ. ८; कल्पसूत्र-९३; आदिनाथ चरित्र-पृ. ११७.
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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