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________________ च्यवन कल्याणक १३७ ...................................................... ___ दशम स्वप्न में पद्मसरोवर देखने से स्वामी देव निर्मित स्वर्ण कमलों पर पदन्यास करने वाले, संसार रूप अरण्य में पाप-ताप से तप्त मनुष्यों के संताप हर्ता, सुवयस् (समान-अवस्थावाले युवकों) को संतोष देने वाले, कमलावलियों से सुशोभित एवं अनेक लक्षणों से युक्त होंगे। ___ ग्यारहवें स्वप्न में रत्नाकर-क्षीर समुद्र के दर्शन से वीर परमात्मा केवलज्ञान रूप रन के स्थानक रूप, स्वच्छ जलरूप समस्त जीवों के प्रति मैत्री से परिपूर्ण, मर्यादा नहीं त्यागने वाले; पराभूत नहीं होने वाले, समुद्र समान पवित्र, क्लेश रहित मर्यादा का पालन करने वाले, सद्गुण रूप रल के भंडार, सहन अलंघ्य एवं अपरिमित प्रमाण वाले होंगे। ___ बारहवें स्वप्न में विमान दर्शन से परमात्मा वैमानिक देवों के पूज्य होंगे। सर्वत्र महोदय को प्राप्त करेंगे तथा दिव्य गीत नृत्यों से युक्त इन्द्रों के द्वारा पूजे जाएंगे। तेरहवें स्वप्न में, रत्नराशि देखने से वे रत्न प्रकारों से विभूषित, सर्वगुण संपन्न, रत्नों की खान के समान देवों से सेवित, रनों से भी अधिक मूल्यवान, प्राणियों के ज्ञान, दर्शन, चारित्रं रूप रत्नत्रयदाता तथा चिंतित अर्थ के दाता एवं नायक रूप होंगे। ___ चौदहवें स्वप्न में निधूम अग्नि के दर्शन से वे स्वामी भव्यप्राणी रूप सुवर्ण की शुद्धि करने वाले, अन्य तेजों को फीका करने वाले, अशुभ कर्मरूप जंगलों को भस्मीभूत करने वाले एवं स्वयं के प्रताप से दिशाओं के समूह का अतिक्रमण करने वाले, देवों के प्रमुख, परम पवित्र तथा जड़ता का हरण करने वाले, परम शुद्धि करने वाले तथा कर्म रूपी ईंधन. को जलाने वाले होंगे। दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुसार ध्वजा को छोड़कर शेष तीन स्वप्न अन्य माने जाते . हैं उनका रहस्य जिनसेन के अनुसार इस प्रकार है___सिंहासन देखने से जगद्गुरु होकर धर्म साम्राज्य प्राप्त करेंगे, मत्स्ययुगल देखने से वे सुखी होंगे और नागेन्द्र भवन को देखने से अवधिज्ञान से युक्त होंगे। इन्द्रों द्वारा कल्याणक उत्सव तीर्थंकर के च्यवन के अवसर पर इन्द्रों के आसन चलायमान होते हैं। अवधिज्ञान के उपयोग से वे तीर्थंकर भगवंत का जन्म हुआ जानते हैं और तत्काल ही सिंहासन, पादपीठ व पादुका त्यागकर शक्रस्तव के योग्य आसन में स्थिर होकर, दाहिना घुटना जमीन पर और बायां घुटना ऊपर उठा हुआ जरा झुका हुआ, मस्तक और हाथ से ललाट का स्पर्श कर प्रणिपात मुद्रा में शक्रस्तव सहित जिनवन्दन करते हैं। तदनंतर इन्द्र भगवान के पास आते हैं। आवश्यक हरिभद्रीय वृत्ति में कहीं शक्रागम एवं कहीं ३२ इन्द्रों के आगमन का कथन है। उत्तराध्ययन सूत्र की वृत्ति में शक्र के आगमन का उल्लेख मिलता है। १. उत्तरांध्ययन सूत्र-केशी गौतमीय वृत्ति
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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