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१३६ स्वरूप-दर्शन पराक्रम वाले, अशुभ कर्म रूप हस्तियों का नाश कर मोती समान उज्ज्वल यश से तीन लोक को विभूषित करने वाले, साहस में अग्रणी और अन्य की सहायता से रहित, उत्तम कार्य को करने वाले और अनन्त बल से युक्त होंगे।
चतुर्थ स्वप्न में लक्ष्मी देखने से सांवत्सरिक दान देकर तीर्थंकर पद के अपार ऐश्वर्य का उपयोग करने वाले, तीन लोक की साम्राज्यलक्ष्मी के स्वामी, अविलम्ब ही विश्व का दारिद्र्य दूर कर प्राणियों के सम्पूर्ण सुखों का विस्तार करने वाले, सम्माननीय, सदानंदी, और सुमेरु पर्वत के मस्तक पर देवों द्वारा अभिषेक को प्राप्त होंगे।
पंचम स्वप्न में पुष्पमालाओं को देखने से वे तीनों भुवनों को मस्तक पर धारण . करने के योग्य, यथार्थ त्रैलोक्य पूज्य, पुण्यवान, शुभ दर्शनीय, अखिल जगत के माननीय, आदरणीय, त्रिभुवन की जनता के हृदयरूपी मंदिर में निवास करने वाले, गुण के संसर्ग द्वारा व्याप्त, गंध से मनोहर, अपनी सुवास से विश्व को वासित करने । वाले और समीचीन धर्म के प्रवर्तक होंगे।
छठे स्वप्न में चन्द्र देखने से वे स्वामी भामण्डल से विभूषित मोहरूपी अंधकार को नष्टकर सम्पूर्ण जगत् के उद्योतकर्ता, अठारह दूषणों से रहित, अत्यन्त तेजस्वी, जगत् जनों के प्रमोद दाता, वाणी द्वारा मोहान्धकार के दूरकर्ता, पंकहर्ता, मार्गदर्शक, सम्यग्दृष्टि की रुचि पैदा करने वाले, मिथ्यात्वी लोगों द्वारा दुर्निरीक्ष्य और देदीप्यमान प्रभा के धारण करने वाले होंगे। ____ सातवें स्वप्न में सूर्य देखने से वे स्वामी भामंडल से विभूषित, अठारह दूषणों से रहित, अत्यंत तेजस्वी, जगत् जनों के प्रमोददाता, मोहांधकार को नष्ट कर संपूर्ण जगत के उद्योतकर्ता, पंकहर्ता, मार्गदर्शक, सम्यक्दृष्टि को रुचि पैदा करने वाले और देदीप्यमान प्रभा के धारण करने वाले होंगे।
अष्टम स्वप्न में ध्वजा देखने से वे धर्मरूपी ध्वजा से विभूषित, महान् प्रतिष्ठा वाले, धर्मध्वजी, असाधारण उत्साह वाले, विश्वरूपी महल के शिखर को सजाने वाले, आगे फरकते हुए दिव्यधर्म ध्यज से सुशोभित, स्वयं की प्रभुता का विस्तार करने वाले रलकोटेश्वर के धाम रूप, वंश के अग्रभाग में वे प्रासादध्वज की भाँति आरूढ़ होने वाले होंगे।
नवम स्वप्न में कलश देखने से वे स्वामी धर्मरूप महल के शिखर स्वरूप सर्व अतिशयों से सम्पन्न, सदाचार परायण, त्रैलोक्य को कल्याण से आपूरित करने वाले संयमी होकर उच्चतम उज्ज्वल धर्म प्रासाद के शिखर पर स्थित रहने वालें, सुव्रत द्वारा सुशोभित, सुमनस् की श्रेणियों से पल्लवित देह वाले, स्वयं के अमृत से अन्य को तृप्त करने वाले एवम् अनेक निधियों के स्वामी होंगे।