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________________ च्यवन कल्याणक १३५ ................... .... स्वप्न फल इन स्वप्नों को सुनकर राजा उसका फलार्थ कहते हैं। फलार्थ कहने की दो पद्धतियाँ हैं-एक तो प्रत्येक स्वप्न का रहस्य और दूसरा सर्व स्वप्नों का सीधा फलितार्थ कहना जैसे-अहो स्वामिनी! अब तुम्हें, कुल में केतु रूप, कुलप्रदीप, कुलपर्वत, कुलावतंसक, कुलतिलक, कुलकीर्तिकर, कुल वृद्धिकर, कुलदिनकर, कुलाधार, श्रमण वर्ग को संसार रूप अरण्य से पार पहुँचाने वाला, मोक्ष मार्ग का प्रकाशक, पर-हितकर्ता, उत्तम विवेक से युक्त, आकाश में चन्द्र समान श्रेष्ठ, धर्म चक्रवर्ती अरिहंत ऐसा पुत्र होगा तथा वह पुत्र संसार कूप में गिरते हुए प्राणियों के अवलम्बन के लिए स्तम्भसमान, इन्द्र-नरेन्द्रों से वंदनीय, लोकोत्तर गुणों से युक्त, त्रैलोक्य-रक्षक, तीनों लोकों को आनंदित करने वाला, समस्त वैरीचक्र का विजेता और महाप्रभावशाली जिनेश्वर होगा। सर्व स्वप्नों का सामुदायिक फल-रहस्य यह है कि वे चौदह राजु लोक के अग्रभाग के ऊपर रहने वाले होंगे अर्थात् चौदह राजु लोक के स्वामी होंगे और चौदह पूर्व के सर्जनहार होंगे। ___ सत्तरिसयठाण में कहा है कि प्रथम अरिहंत ऋषभदेव भगवान की माता को जिनेश्वर के पिता ने तथा इन्द्रों ने फलितार्थ कहा था तथा अन्य जिनेश्वरों की माता को राजा या स्वप्नविद् विप्रों ने फलितार्थ कहा है। __. आवश्यक हारिभद्रीयवृत्ति में ऋषभदेव भगवान के जन्म के समय शक्र द्वारा स्वप्न फलकथन करने का उल्लेख है परन्तु वहीं पर कहीं ३२ इन्द्रों के आगमन का .दृष्टिकोण भी प्रस्तुत किया गया है। स्वप्न रहस्य की यह पद्धति प्रत्येक स्वप्न के उद्देश्य को स्पष्ट करती है एवं स्वप्न के रहस्य का उद्घाटन करती है। स्वप्नों का रहस्य इस प्रकार है:- प्रथम स्वप्न में चार दाँतवाला हस्ति देखने से चार प्रकार के धर्मों का प्रबोधन करने वाले, महान पुरुषों के गुरु तथा अनन्तबल के एक स्थानक रूप, संसार रूप अरण्य के कर्म रूपी वृक्ष को जड़मूल से उखाड़ने वाले, दानमार्ग को प्रवर्तताने वाले और अतुल बल के स्वामी, राजमान्य, सदा उत्तम ऐसे पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी। द्वितीय स्वप्न में वृषभ देखने से वे भरतक्षेत्र में बोधि निक्षेप करेंगे। मोहरूपी कीचड़ में फंसे हुए धर्म रूपी रथ को निकालने वाले, साधु जनों को संसार रूपी अरण्य से पार उतारने में समर्थ, मार्गगामी, क्षमाभार का उद्धार करने वाले अतुल बल से उज्ज्वल, शुभ, दर्शनीय और समस्त लोक में ज्येष्ठ होंगे। तृतीय स्वप्न में सिंह को देखने से वे राग-द्वेष आदि रूप हाथियों द्वारा त्रस्त भव्यप्राणी रूपी रक्षक पुरुषों में सिंह के समान धीर, निर्भय, शूरवीर, अस्खलित
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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