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________________ ...................................................... १३८ स्वरूप-दर्शन इन्द्र भूमण्डल पर आकर प्रथम जिनेश्वर की माता को तीन प्रदक्षिणा करते हैं, प्रणाम करते हैं और बाद में माता की स्तुति करते हुए उनकी प्रशंसा करते हैं और नारीपद की प्राप्ति का गौरवमय आदर्श प्रस्तुत करते हैं। बाद में गर्भस्थित जिनेश्वर की स्तुति करते हैं। ___ इस अवसर पर इन्द्र के वचन से वैश्रमण यक्ष की आज्ञा से तिर्यग्जृम्भक देव अथवा सौधमेन्द्र की आज्ञा से कुबेर तीर्थकर के पिता के भवन तथा सम्पूर्ण नगरी को कोटि स्वर्ण के ढेर, मणि, मौक्तिक, प्रवाल, कर्केतम और नीलमणि आदि रत्नों के समूह, चीन, अर्धचीन, देवदूष्य आदि श्रेष्ठ वस्त्रों का समूह तथा अन्य सर्व भोग्य. ' पदार्थों से भरते हैं। तदनन्तर इन्द्र नन्दीश्वर द्वीप जाकर अष्टान्हिका महोत्सव कर बाद में स्वस्थान लौटते हैं। इन्द्र महाराज की आज्ञा से देवियाँ निरन्तर तीर्थंकर की माता की सेवा में . उपस्थित रहती हैं।
SR No.002263
Book TitleArihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1992
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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