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१३२ स्वरूप-दर्शन
ज्ञातासूत्र में प्रभु के च्यवन के समय पक्षी विजयसूचक शब्द बोलते हैं, सुरभियुक्त शीतल मन्द पवन भी प्रदक्षिणावर्त होकर बहता हुआ भूमि का स्पर्श करता है। समस्त पृथ्वी शस्य से आच्छादित एवं हरी भरी रहती है। जनपद हर्ष से हर्षित होते हैं। स्वप्न-दर्शन
च्यवन के प्रभाव से वातावरण में जो विशेषता होती है उसमें एक सर्वोपरि अद्भुत विशेषता १४ स्वप्नों की है। च्यवन काल पर ही जिनेश्वर की माता अनुपम, अनुत्तर, अद्भुत और अद्वितीय ऐसे चौदह स्वप्न देखती है। इन स्वप्नों की सर्वोपरि विशेषता एवं महत्व यही है कि ये स्वप्न इतने रहस्यों से भरे होते हैं कि इसके उद्घाटन में जिनेश्वर का सम्पूर्ण भविष्य झलकता है। इस प्रकार स्वप्न तीर्थंकर के भावी प्रतिभा एवं प्रभाव के परम प्रतीकरूप हैं। स्वप्न, स्वप्न होते हुए भी सत्य के निर्देशकरूप हैं। स्वप्नों के कारण
निमित्तशास्त्र के अंगों में 'स्वप्न-विद्या' का द्वितीय स्थान है। भारतीय साहित्य में स्वप्नागमन के नौ निमित्त कारण बताये हैं-(१) अनुभूत वस्तु (२) श्रुत वस्तु (३) दृष्ट वस्तु (४) वात, पित्त अथवा कफ-विकृति के कारण, (५) स्वप्नवाली प्रकृति के कारण, (६) चिंतित चित्त के कारण, (७) देवादि के सान्निध्य. के कारण, (८) धार्मिक स्वभाव के कारण और (९) अतिशय पापोदय के कारण। इनमें प्रथम के छह स्वप्न कारण शुभ
और अशुभ दोनों प्रकार के होते हैं परन्तु उनका कोई फल नहीं होता है। अंतिम तीन निमित्त से आये हुए स्वप्न अपने फल देते हैं। अतः उनका शुभाशुभ फल निश्चित होता
स्वप्नों के फलने के काल __रात्रि के प्रथम प्रहर में आने वाले स्वप्न का फल बारह मास के भीतर मिलता है। द्वितीय प्रहर में आने वाले स्वप्न का फल छः मास के भीतर मिलता है। तीसरे प्रहर में आने वाले स्वप्न का फल तीन मास में मिलता है और चौथे प्रहर में आने वाले स्वप्न का फल एक मास में मिलता हैं। सूर्योदय से दो घड़ी पूर्व जो स्वप्न आता है उसका फल दस दिन में प्राप्त होता है और सूर्योदय के समय देखे गये स्वप्नों का फल शीघ्र ही प्राप्त होता है। स्वप्नों के विभिन्न प्रकार एवं स्वरूप
स्वप्नों के विभिन्न प्रकार एवं स्वरूप का विश्लेषण गौतम स्वामी के पूछने पर भगवान् महावीर ने बहुत सुन्दर बताया है। भगवती सूत्र में इसी को प्रश्नोत्तर रूप में प्रस्तुतः किया है। जो इस प्रकार है :१. कल्पसूत्र सुबोधिका, टीका-पत्र-१२१ २. शतक १६, उ. ६, सू. ८-११